शनिवार, 3 अप्रैल 2021

अंगुलिमाल की गलियों में अहिंसा का अस्त्र::अशोकबिन्दु


 चलो ठीक, सामने वाला अपराधी ही हम मान लेते हैं।


लेकिन उसके प्रति हमारा व्यवहार क्या होना चाहिए?

हर व्यक्ति का अपना अपना स्तर होता है। 

आप उसके खिलाफ खड़े हो?! स्वयं आपकी चेतना व समझ का स्तर क्या है? 


हर व्यक्ति का अपना अपना स्तर है।तुलना को विद्वानों ने गलत बताया है। पांचों अंगुलियां एक सी नहीं होती।लेकिन वह हथेली से जुड़ी होती है।हथेली व अंगुलियों का संचालन कहीं और से होता है।हथेलियों सहित अंगुलियों का स्तर भी अलग अलग होता है। तब भी मुट्ठी बनती है। मुठ्ठी बनती है।इन अंगुलियों, हथेली, अंगुलियों सहित हथेलियों आदि के साथ साथ उससे सम्बद्ध हाड़ मास शरीर भी होता है।इस हाड़ मास शरीर में स्वतः, निरन्तर भी होता है, अनन्त से आती ऊर्जा भी होती है। चारो ओर मानव, जीवजन्तु, प्रकृति, जगत, ब्रह्मांड आदि हमारी इच्छाओं की औकात कहाँ तक है? बुद्ध तो इच्छाओं को ही दुःख, कुप्रबंधन, भ्रष्टाचार आदि का कारण बताते हैं।लोग संस्थाओं, समाज, धर्म के ठेकेदार बने बैठे हैं?


महाभारत के बाद द्रौपदी तक अफसोस करती है जो महाभरत के कम उत्तरदायी नहीं है। चलो ठीक है सामने वाला अपराधी है।तो हम क्या करेंगे? द्वेष, ईर्ष्या, अशांति, असन्तुष्टि, भेद ,जबरदस्ती, हिंसा के परिणाम बेहतर होकर भी कितने बेहतर हो सकते हैं?उसके परिणाम शाश्वत, सहज, सरल नहीं हो सकते। एक युद्ध दूसरे युद्ध को जन्म दे देता है क्यों न पहले युद्ध का परिणाम कितना भी कितने समय के लिए भी हमें  बेहतर लगे।जीवन एक पड़ाव, हजार पड़ाव तक सीमित नहीं है।वह अनन्त यात्रा की जिम्मेदारी है।उपदेश, कथावाचक, वर्तमान का सुकून भी कहीं गहराई में उपद्रव छिपाए हुए हो सकता है।हर बिंदु व चक्र पर दो सम्भावनाएं छिपी होती हैं।आज हम विश्व स्तर पर जिन कौमों को विश्व शांति, बसुधैव कुटुम्बकम के रास्ते पर अवरोध मान रहे हैं, वे कारण वर्तमान के नहीं हैं सिर्फ।वे भी अनन्त काल से हैं। मूल तक कभी  जाया ही नहीं गया। श्रीकृष्ण की तश्वीरों के सामने आरती घुमाने वालों की कमी नहीं लेकिन अपने व्यवहारिक जीवन में उनके सन्देशों, महाकाल का विराट रूप आदि की समझ रखने वाले कितने हैं?

चलो ठीक है।सामने वाला अपराधी है।

आपके व्यवहार व कर्म कितने भी बेहतर हों लेकिन उसमें पैदा हुआ आपके प्रति द्वेष, भेद आदि का परिणाम कहाँ तक जाता है?उसका असर क्या पड़ता है?

चलो ठीक है सामने वाला अपराधी है लेकिन  बसुधैब कुटुम्बकम का मतलब क्या है? धार्मिक अनुष्ठानों में गला फाड़ फाड़ ये चीखने का मतलब क्या है--"जगत का कल्याण हो!जगत का कल्याण हो! "

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