हमारी इच्छाएं हमारी आस्तिकता की पहचान नहीं नास्तिकता की पहचान हैं।
आत्मा है आत्मीयता ,आत्मा है वह स्थिति जो हमें अनन्त का ।परम् का अहसास कराती रहती है। वह तो सागर में लहर की भांति होती है।सागर वह ,वह में सागर। उसकी सागर में डूब ही प्रेम है। संसार की वस्तुओं से प्रेम प्रेम नहीं काम है, लोभ है, लालच है।आस्तिकता में प्रेम सिर्फ अंतर स्थिति है।जगत में तो-न काहू से दोस्ती न काहू से बैर।
हम आराध्य के समक्ष की हेतु में खड़े हैं?सांसारिक इच्छाओं की खातिर। प्रेम तो अंधा है, मौत भी सामने आ जाए तो भी प्रेम है।
प्रेम हमारेसूक्ष्म, कारण, परम् आत्मा, आत्म गुणों में डूब है।
ऐसे में कैसी प्रार्थनाएं?
ऐसे में तो बाबर की प्रार्थना ठीक है, यदि बेटे से प्रेम है तो?मेरी जान लेले लेकिन हुमायूं को बचा दे।
हमारी प्रार्थनाएं अज्ञानता से उपजी हैं।
कोई कहता है, हे मालिक बरसात रुक जाए।एक कहता है, माको लिक ठीक।और बरसा।बेचारा मालिक को किस उलझन में डालते हो?
मालिक को मन्दिर में जा चढ़ाए जा रहे हो, चढ़ाए जा रहे हो?मालिक के दर पर पर ढेर ही ढेर।बेचारे क्या करते होंगे?
सहज मार्ग में प्रार्थना मालिक से लिंक के लिए है, एक स्थिति है।
हे नाथ!
तू ही मनुष्य जीवन का वास्तविक ध्येय है।
हम अपनी इच्छाओं के गुलाम हैं,
जो हमारी उन्नति में बाधक है।
तू ही एक मात्र ईश्वर व शक्ति है
जो हमें उस लक्ष्य तक ले चल सकता है।
हमारे लिए इस से बेहतर अन्य प्रार्थना क्या हो सकती है?शरणागति में, समर्पण में, प्रेम में अन्य प्रार्थनाओं का क्या महत्व? वे नास्तिकता का ही परिचय हैं।
#अशोकबिन्दु
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