रविवार, 2 अगस्त 2020

तुम्हारे आस्तिक या नास्तिक होने से कोई फर्क नहीं पड़ता:अशोकबिन्दु

 हम जिधर भी निगाह डालते हैं हमें उधर कुदरत नजर आती है ।

इस कुदरत के बीच में हमें मनुष्य द्वारा निर्मित बनावटी कृत्रिम चीजें भी देखने को मिलती हैं।

 इस सबसे हटकर कुछ और भी है, जो सर्व व्याप्त है। जो हम में भी है तुम्हारे में भी है। कुछ लोगों ने इस दुनिया में प्राणियों को विशेषकर मनुष्यों को सुर और असुर में बांटा है। यह सुर और असुर क्या है?
जिन्हें असुर कहा जाता है-वे भी हवन करते थे।ब्रह्मा, विष्णु, महेश के लिए आराधना, तपस्या आदि करते थे।हम सब भी ये करते हैं।मूर्ति के व्यपारियों द्वारा मूर्ति खरीद कर उसे मन्दिर आदि में स्थापित कर उसको पूजते हैं, हवन करते हैं। दिन रात हम किस में, किन भावनाओं,आचरणों में व्यस्त रहते हैं?

हमारी नजर में, प्राण सर्वत्र व्याप्त हैं।प्राण ही सुर है।जो उसके अहसास में नहीं है, वह क्या असुर नहीं है? हम किस लिए जी रहे हैं?हाड़ मास शरीर, इन्द्रियक आवश्यकताओं के लिए सिर्फ।हमारे अंदर जो प्राण हैं, आत्मा है उसके लिए क्या करते है?विश्वास किस पर है?आत्मा पर?प्राण पर?


अपनी अपनी आस्था ...? अपनी अपनी आस्था कैसे?!हम तो यही कहेंगे कि आस्था एक ही होती है, दिल एक ही होता है। हां,आस्था का स्तर अलग अलग हो सकता है।दिल का स्तर अलग अलग हो सकता है। प्रतिदिन मन्दिर जाते हो, मस्जिद जाते हो?क्या फर्क पड़ता है ?यदि अपने धर्म स्थल से निकलने के बाद फिर -"अरे, सब चलता है।" फिर कर्म कैसे?सोंच कैसी?भाव कैसा?नजरिया कैसा?दुनिया को देखने की प्रतिक्रिया कैसी? चाहत कैसी? लक्ष्य कैसा?   प्रेम की दशा का स्तर  क्या? 

अपने इंद्रिक व शारीरक इच्छाओं के लिए झूठ-प्रपञ्च, षड्यंत्र, हिंसा, मनमानी, कुप्रबन्धन, अपराध...... सुरता.... कि... असुरता..?!अब अपने को कहीं का तीरंदाज समझो।जन्मजात  उच्चता के घमण्ड में जिओ। अपने जाति, धन, पद,हाड़ मास तन बल आदि पर गर्व का मतलब क्या? अपने स्वार्थ के लिए दूसरों को कष्ट?अपनी ऊंची हांकने के लिए दूसरों बातों ही बातों नीचे गिरना? हम अब ऐसे में क्या कहें-सुरत्व या असुरत्व में? बात ये नहीं कि किस जाति, किस मजहब के?बात ये नहीं कि किस घर से,किस संस्था से,किस देश से?किन आराध्यों,महापुरुषों की तश्वीरों - मूर्तियों के बीच?

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