सोमवार, 17 अगस्त 2020

उबन्तु उबन्तु:: मैं हूँ क्योंकि हम सब हैं:अशोकबिन्दु


      कुदरत के बीच जो हैं वे असभ्य हैं क्या?

इंसानी समाज जो कुदरत के बीच है-असभ्य है ? जो जंगल के बीच है?


आज कोरोना संक्रमण के दौरान पागल, सड़क छाप, खानाबदोश जीवन जीने वाले, भिखारी ,जंगल में रहने वाले इंसान कितना कोरोना से संक्रमित हैं?


किसी ने कहा है- कुदरत में कौन कुदरती ज्ञान के साथ जी रहा है?असल ज्ञान तो अंतर ज्ञान है, जो प्राणी के अंदर स्वतः है।


वहां न तुम्हारे ग्रन्थ हैं, न भगवान, न धर्म स्थल, न पुरोहित।अरे, वे तो असभ्य हैं जंगली कहीं के। उनके तन पर कपड़े भी कम हैं या नहीं भी हैं।


उनके शरीरों में क्या आत्माएं हैं ही नहीं? उनकी आत्मा मर चुकी है क्या?


ब्रह्मांड व प्रकृति में जो भी है, उसकी आत्मा मर चुकी है क्या?

हम ही हैं, जो जिंदा हैं।हमारी आत्मा जिंदा है। 



ब्रह्मांड में सब कुछ स्वतः है, नियम से है।नियम में बंधा है। 

मनुष्य जब जब प्रकृति की स्वतः चलिता से दूर हुआ है वह स्वयं का ही नहीं, अपने कुल व पासपड़ोस के  पतन का कारण बना है।

हम तो अब कहेंगे कि हमें अब कबीलाई संस्कृति में विश्वबंधुत्व,बसुधैव कुटुम्बकम की भावना, सहकारिता, समूह में त्याग के साथ जीना आदि परम्परा फिर से शुरू होनी चाहिए। हमारी संस्कृति चाहें कितनी भी पुरानी हो, हम क्यों न अपने को सनातनी होने का दम्भ भरते हों? अभी काफी निम्न स्तर पर जी रहे हैं। दक्षिण ेेशया में कही से भी किधर से भी 100 मकानों के अध्ययन कर लीजिए, पता चल जाएगा कि विचारों, भावनाओं, समझ, चेतना का क्या स्तर है? पश्चिम के देशों में जिन्हें काफिर, चोर, लुटेरा कहा गया, आखिर उन्हें क्यों कहा गया। महत्वपूर्ण ये नहीं है कि हमारे ग्रन्थ, महापुरुष क्या कहते हैं? महत्वपूर्ण ये है कि हमारा नजरिया व समझ का स्तर क्या है? कमलेश डी पटेल दाजी को कहना पड़ता है ,महत्वपूर्ण ये नहीं है कि  हम आस्तिक हैं नास्तिक ,महत्वपूर्ण है कि कि हमारी समझ, चेतना का स्तर क्या है?अनुभव व अहसास क्या है ?आइंस्टीन ने कहा है-परिवर्तन परिवर्तन को स्वीकार करने की माप ही बुद्धिमत्ता है।



अमेरिका की एक रिसर्च संस्था होती है जंगल में  जीवन यापन करने वालों का अध्ययन करती होती है।

उबन्तु उबन्तु!!

उस संस्था के कुछ लोग अफ्रीका के जंगलों में रहने पहुंचते है। 

कुछ दिन के बाद घुल मिल जाने के बाद जंगल के कुछ बच्चों को इकट्ठा करके उनके बीच फलो की एक टोकरी रखी जाती है बच्चों से कहा जाता है यह फल की टोकरी उस पेड़ पर रख दी जाएगी यहां से जो बच्चा उस पर तक जल्दी पहुंचेगा वह टोकरी उसकी हो जाएगी इसके बाद फलों की टोकरी को पेड़ पर रख दिया गया जंगली बच्चे दौड़ कर उस पीने की ओर जाने लगे एक बच्चा जो सबसे आगे था उस टोकरी को छू लेता है इसके बाद फिर क्या होता है वह बच्चे एक दूसरे का हाथ पकड़कर उस पेड़ के चारों ओर चक्कर लगाने लगे और चीखने लगे - उबन्तु उबन्तु। वे फल जंगलियों ने मिल जुल कर खा लिए।

कुछ दिनों बाद पता चला कि उबन्तु उबन्तु का मतलब है," मैं हूं  क्योंकि हमसब हैं।"


समस्या मानव समाज है,हमारे समाज में हैं।

जहाँ  आपके ग्रन्थ नहीं, आपके धर्मस्थल नहीं। वहां क्या सब गलत है? जहां आपके देवी देवता नहीं वहां क्या सब गलत है।




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