मंगलवार, 18 अगस्त 2020

बात बहुत दूर तक जाती है, अनेक जन्मों तक भी।संस्कार बन कर भाग्य बन कर::अशोकबिन्दु

 कभी कभी हम महसूस करते हैं कि ध्यान हमें जितना ऊंचा बनाता है, सहस्राधार से भी ऊपर अनन्त यात्रा का साक्षी! उतना ही नीचा भी ऊर्जा को पहुंचा देता है, मूलाधार की निम्न निकृष्ट दशा पर ! ऐसे में अपने आराध्य के प्रति शरणागति, समर्पण व हालातों के प्रति तटस्थता आवश्यक है।  जब तक हम इस शरीर में हैं, गिरने की भी सम्भावनाएं हैं।कुछ चीजें ऐसी हैं जो समाज,समाज के धर्मों, जातियों,संस्थाओं, शासन वर्ग, सरकारी कर्मचारियों ,पूंजीपतियो,पुरोहितों के लिए गलत होती हैं लेकिन वे ग्रंथों, सन्तों की वाणियों, इतिहास की चमक में हमें सम्मान दिलाती है। शिक्षक, शिक्षित की नजर में भी नहीं।हम अकेले हैं इसका मतलब ये नहीं है कि हम गलत हैं। देखा गया है शासन, समाज ने किसी व्यक्ति को गलत साबित कर दिया, उसे जहर दिया गया, सूली भी दी गयी लेकिन समय ने करवट बदली ,जिसको झाड़ समझ कर किनारे कर दिया गया वह हीरो बन गया। जिंदगी यहीं अभी जीवन यापन करने, हाड़ मास शरीर सिर्फ इसी हाड़ मास शरीर तक सीमित नहीं नही है, सूक्ष्म जगत है, कारण जगत है आगे भी अनेक जगत हैं।हर जगत में अनेक स्तर है।आप समझते होंगे कि हमने अमुख अमुख व्यक्ति से पल्ला झाड़ लिया लेकिन ऐसा इन्हीं।...और हर खामोशी या हर वार्ता में हमें गिरने का मतलब  तुम्हारी जीत नहीं।बात बहुत दूर तक जाती है।संस्कार व भाग्य बन अनेक जन्मों तक पीछा करती है।


 अहंकार शून्य होना आवश्यक है।निरा प्रेम में।प्रेम में तो बड़ी से बड़ी ऋणात्मकता भी झिल जाती है। सन्त तुलसी के अनुसार यश अपयश की भी चिंता नहीं, मीरा के अनुसार कुल मर्यादा ,लोक मर्यादा की भी चिंता नहीं। ऐसे में सामने अमीर हो गरीब, जन्म जात उच्च हो या निम्न, अधिकारी हों हो या भिखारी, राजा हो या रंक... आदि आदि कोई मायने नहीं रखता।वहां तो एक ही मायने रह जाता है-सागर में कुम्भ ,कुम्भ में सागर।

#अशोकबिन्दु


कबीरा पुण्य सदन



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