शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

24जुलाई -पार्थ सारथी राजगोपालाचारी जी जन्म दिन पर विशेष/उनकी नजर में शिक्षा::अशोकबिन्दु




हमारा पूरा जीवन शिक्षा जगत में ही बीत गया,बीत रहा और बीतेगा। हमने बीएड सत्र के दौरान एस एस कालेज, शाहजहांपुर से आकुल जी से पढ़ा था कि शिक्षा तो व्यक्ति की संभावनाओं को विकसित करना है।विवेकानंद ने कहा है-शिक्षा है अंतरनिहित शक्तियों का विकास। इन दिनों में सहज मार्ग में सन्त व  ऋषि श्री पार्थसारथी राजगोपालाचारी की याद व उनके साहित्य के अध्ययन में हैं। वे शिक्षा पर क्या महसूस करते थे?इस पर हम कुछ व्यक्त करने का प्रयत्न कर रहे हैं।


इस समय हमारे हाथ में है उनकी पुस्तक युवावस्था प्रतिज्ञा और प्रयास का समय भाग 2 एक निर्देशित जीवन।

 इस पुस्तक में उनकी उन की उन वार्ताओं का संकलन प्रस्तुत किया गया है जो भारत और विदेश के विभिन्न स्थानों पर उनके और युवाओं के मध्य हुई युवाओं के जोश और ही आवश्यकता और प्रयासों को ध्यान में रखते हुए इन्होंने सारे विश्व के युवाओं को परिवर्तन और भविष्य के नव निर्माण के लिए प्रेरित किया है श्री रामचंद्र मिशन में सहज मार्ग प्राकृतिक मार्ग अध्यात्म के प्रशिक्षण की एक व्यावहारिक पद्धति प्रस्तुत करता है वस्तुतः सर्व ज्ञात राज योग की पुरानी पद्धति है जिसे आधुनिक जीवन की आवश्यकताओं के अनुरूप हाल कर सरल कर दिया गया है इसका दे आंतरिक पूर्णता या ईश्वर साक्षात्कार है श्री रामचंद्र जी की शिक्षाओं के अनुसार ईश्वर अनंत किंतु सरल है इसलिए उस तक पहुंचने का मार्ग भी सरल होना चाहिए एक पहुंचे हुए समर्थ गुरु की सहायता एवं मार्गदर्शन में मन का नियमन करके अभ्यासी उच्चतम अवस्था प्राप्त कर सकता है यह अवस्था गुरु प्रणाहूति अर्थात योगिक संप्रेषण द्वारा देता है और हृदय में देवी ऊर्जा का संचार करते अभ्यासी के अंतर त मां को परिष्कृत कर देता है सहज मार्ग की एक खास विशेषता है की श्री रामचंद्र जी की महासमाधि के बाद भी आज उनकी जगह एक समर्थ सद्गुरु श्री पार्थ सारथी राजगोपालाचारी जी के रूप में हमें उपलब्ध होने के बाद अब श्री कमलेश डी पटेल दाजी जिनकी सहायता पाकर कोई भी व्यक्ति कुछ समय तक इस प्रणाली का अभ्यास करके प्रार्थी का अनुभव कर सकता है श्री पार्थ सारथी राज गोपालाचारी का कहना का कहना था किसी भी मनुष्य की बाहर क्षमता तभी प्रकट हो सकती है जब वह अपने उस मन का नियमन करने की योग्यता अर्जित कर ले जो उसे प्राप्त उपकरणों में से सर्वाधिक परिपूर्ण है वह कैसा बनेगा इस बात से तय होगा की वह अपने मन का प्रयोग कितने अनुशासन और नियमन से करता है क्या वह ऐसा मजदूर बनने जा रहा है जो केवल लोहा काटने की आरी यक्षी मशीन को ठीक से चलाना जानता है या वह कोई वैज्ञानिक बनने जा रहा है या वह उच्चतम उदाहरण बनेगा मानवीय पूर्णता का एक संत ।

 श्री पार्थ सारथी राजगोपालाचारी के गुरु बाबूजी महाराज से जब एक बार पूछा गया की वास्तव में शिक्षित कौन है तब उनका कहना था जब कोई व्यक्ति शिक्षित हो जाता है तब उसके अधिकार खत्म हो जाते हैं उसके कर्तव्य बच जाते हैं वास्तव में शिक्षित व्यक्ति के सामने सिर्फ उसके लिए कर्तव्य है शिक्षक या प्रशिक्षक के कर्तव्य और भी बड़े हैं शिक्षक या प्रशिक्षक शिक्षा जगत में ज्ञान के आधार पर अनेक प्रयोग निरीक्षण आचरण रखने का आवश्यक कर्तव्य रखता है।


श्री पार्थ सारथी राजगोपालाचारी कहते हैं- जब तक आप अपने अंतर में अस्तित्व की दशा में परिवर्तन नहीं करते आप सुखी नहीं हो सकते विज्ञान और तकनीक कोई नई नहीं है इनके प्रति पूरा आदर भाव रखते हुए मैं कहूंगा की ए नई नहीं है क्योंकि वह इतनी पुरानी है जितना खुद भारतवर्ष या जितना यह संसार यदि कोई हमारी रामायण और महाभारत पर विश्वास करें तो तब ऐसे ऐसे शस्त्र हुआ करते थे जिनके सामने आज के हाइड्रोजन बम भी कुछ नहीं है मैं उन्हें कल्पना शक्ति की उड़ान नहीं मानता क्योंकि कल्पना भी किसी ना किसी असलियत पर आधारित होती है तब . . ..  .  आपका मन उस वास्तविकता को विस्तार दे देता है तो यह सब बातें नई नहीं है । आराम-- क्यों नहीं ? लेकिन आपको यह नहीं सोचना चाहिए हमारा सुख आराम पर निर्भर करता है। लेकिन आराम की स्थिति में मैं चिंतन मनन कर सकता हूं और अपने में ऐसी दशा निर्मित कर सकता हूं जिसके परिणाम स्वरूप मुझे सुख मिल जाए यदि ईटों की एक लारी पर भी मैं आराम से बैठ सकता हूं तो क्या हर्ज है दुर्भाग्य से हमारे देश में आरामदायक जीवन और तपस्वी तपस्वी जीवन में अंतर अथवा विभेद किया गया है जो मेरे विचार से मूलभूत धमधा कीलों के बिस्तर पर सोना अग्नि के ऊपर चलना जानबूझकर शरीर को कष्ट देना स्वाभाविक आवश्यकताओं से वंचित रहना यह सब अनावश्यक था परिणाम स्वरूप मानवता का अधिकांश भाग योग साधना से दूर होता गया क्योंकि वे डरते थे हम से नहीं होगा साहब ऋषिकेश या बद्रीनाथ में गंदा के बीच कमर तक पानी में खड़े रहना इस शब्द का क्या अर्थ है क्या हम लकड़ी के लगते हैं? इसके विपरीत योग कहता है संवेदनशीलता को विकसित करो परंतु उसे किसी ऐसी वस्तु पर लगाओ जो शासित है जो कभी परिवर्तित नहीं होती होगी क्योंकि जो परिवर्तनीय है वह शाश्वत नहीं हो सकती शाश्वत अर्थात अपरिवर्तनीय तो यदि अब मुझे किसी पर विश्वास रखना है तो वह ऐसा कुछ होना चाहिए जो सास्वत हो अपरिवर्तनीय हो क्योंकि मेरी तुलना में बेहतर लेगा नहीं।


. ..... मैं जो कह रहा हूं वह बात है की पद्धति का मूल्यांकन उसकी प्रभाव उत्पादकता से करें। "आनो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वत:'- अर्थात -"बुद्धिमत्ता कहीं से भी मिले उसे ग्रहण करो।" यदि गधे के  ढेंचू ढेंचू आपको अपने घर में चोर के आने से सावधान कर देती है आपको उस गधे का आभारी होना चाहिए ।.......  ब्रह्मसूत्र, गीता और उपनिषद मिलकर प्रस्थानत्रयी कहलाते हैं ।ये तीन स्तंभ हैं जिन पर सनातन धर्म टिका है। लोगों ने इसके एक तिहाई भाग की बिल्कुल उपेक्षा कर दी और शेष दो तिहाई के बारे में वे नहीं जानते कि उनकी उपेक्षा करें यह स्वीकार करें? किसे पता है- ब्रह्म सूत्र क्या है ?किसे पता है उपनिषद क्या है? मंदिर में सबसे बड़ा लाभ यह है भगवान वहां है और वहां जाकर मैं जो चाहूं वैसा कर सकता हूं ।वापस आकर मंदिर के बाहर जो समझ में आए कर सकता हूं।

......ज्ञान, मानवता, आध्यत्म आदि के आधार पर च
लने की जिम्मेदारी किसी की नहीं?हम(अशोकबिन्दु) सोंचने लगे। हां, फिर आगे----

पार्थ सारथी राजगोपालाचारी इस पुस्तक में एक जगह कहते हैं आज भारत में सबसे आवश्यक कार्य है युवा पीढ़ी के ध्यान को विश्व युद्ध भौतिकता पर आधारित लक्ष से हटाना भारत में जो सबसे बड़ी बनती है वह यही है की शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य है नौकरी पाना इन भारतीय प्रबंधन संस्थानों में पूरे देश में सैकड़ों हजारों युवा अपना भाग्य आजमा ते हैं क्योंकि मुझे बताया गया है आई आई एम के एक सामान्य स्नातक को पढ़ाई के दौरान कैंपस में ही चुन लिया जाता है और ढाई से तीन लाख सालाना वेतन तय हो जाता है वह इस के योग्य नहीं है मेरे विचार से कोई भी स्नातक इतने भारी वेतन की योग्य नहीं है आप क्या हैं केवल एक स्नातक अपनी योग्यता तो आपको अभी साबित करनी है लेकिन उनको लुगाया जाता है उनको प्रस्तुति दी जाती है यह बिल्कुल ऐसा है मानो एक लड़की अपनी टांगे दिखा रही है और ऐसे समाज में जहां सफलता का मापदंड केवल आर्थिक सफलता भौतिक सफलता माना जाता है हमारे युवा इसी के पीछे दौड़ रहे हैं क्योंकि उन्हें सफलता चाहिए इसलिए समाज में केवल अमीर लोग हैं जो हंसी के पात्र हैं दयनीय है।   ......... अतः शिक्षा में सबसे महत्वपूर्ण है अपने युवाओं को यह समझाना की अपने आप को शिक्षित करो कुछ तथ्यों को रखकर परीक्षा पास कर लेने से नहीं चलेगा।. ... .. जैसा कि गीता में कहां है ब्राह्मण का विवाह ब्राह्मण से बेस्ट का विवाह बेस्ट से होना चाहिए मैं इससे सहमत नहीं हूं आज के जमाने में ए सही नहीं है मिलावट करने का मतलब है मिलाना तेल में मिला ना मिलावट है दूध में पानी मिलाना मिलावट करना है कंकर पत्थर के छोटे छोटे गोल टुकड़ों पर रंग लगाकर दाल जैसा बनाकर मिला देना मिलावट करना है (लेकिन एक इंसान का इंसान से संबंध मिलावट नहीं है)।


सन्तुलित जीवन के लिए शिक्षा!


श्री पार्थ सारथी राजगोपालाचारी जी आगे कहते हैं चिंता का विषय है कि आजकल हमारे किशोरों को क्या पढ़ाया जा रहा है लोग भूल गए हैं प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में शिक्षा का भी एक समय होता है जो 2 वर्ष की उम्र में सीखना चाहिए वह 60 वर्ष की उम्र में नहीं लिखना चाहिए और जो 18 या 20 वर्ष की उम्र में सीखना चाहिए वह 6 वर्ष की उम्र में नहीं पढ़ाया जाना चाहिए अतः समय सही समय, स्थान सही स्थान विषय सही विषय समस्या तो हमेशा से रही है मेरा मानना तो यहां तक है ऐसा समय आना चाहिए जब विद्यार्थी स्वयं समझे उन्हें क्या चाहिए और माफ करें स्कूल उन्हें वह प्रदान करें जिसके उन्हें जरूरत है यहां मेरा अपरा भोजन यूनिफॉर्म या इस तरह की चीजों से नहीं है बल्कि एक अत्यंत आवश्यक मार्क्स है क्योंकि यहीं बैठी है जो हमारे युवाओं के लिए हमारे बच्चों के लिए उनके ज्ञान के उधर के लिए एक नई रहा प्रशस्त करेगी हमारे देश की एक त्रासदी यह भी है कि हम चाहे किसी भी उम्र के क्यों ना हो नहीं जानते कि हम क्या चाहते हैं आज किसी भी आम विद्यार्थी की चाहे वह स्कूल का हो कॉलेज का हो या कहीं भी उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहा हूं एक ही समस्या है यदि आप उनसे पूछें आप क्या चाहते हैं उन सभी का जवाब एक होगा सफलता मैं जीवन में सफल होना चाहता हूं और यदि आप पूछें जीवन में सफलता से आप का मतलब क्या है उन्हें नहीं मालूम सफलता क्या है बेबस अपने किसी दोस्त अंकल या आंटी की तरफ इशारा करेंगे जो बहुत अमीर हैं जिनके पास बहुत पैसा है दो तीन गाड़ियां हैं बढ़िया वातानुकूल शयन कक्ष कीमती कपड़े हैं और बे कहेंगे यही वह सब है जो हम चाहते हैं।....... युवाओं को बताया जाना चाहिए कि हम विकसित हो रहे हैं जीवन के मौलिक रूप अमीबा जैसे एक कोशिका वाले जीव से शुरू होकर पिछले लाखों-करोड़ों वर्षों से हम निरंतर विकसित होते आ रहे हैं बायोलॉजी या जीव विज्ञान की कक्षाओं में आप इनके बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे और मनुष्य होने के नाते हमें आगे भी विकसित होना है विकास के अनेक पहलू है उनमें से एक है जीव रूप में मनुष्य का विकास।.   .....  जब हम बाहरी दुनिया को देखते हैं तो आलोचना की प्रवृत्ति या प्रलोभन में फंस जाते हैं यह अच्छा नहीं है वह सुंदर नहीं है यह बदसूरत है वह लंबा है वह छोटी है इत्यादि अर्थात हर बात का फैसला तुलनात्मक मूल्यांकन से है आंतरिक दुनिया में कोई मूल्यांकन प्रणाली नहीं है क्योंकि यहां जो कुछ बाहर है उससे हम अपने अंतर की खोज की ओर बढ़ते हैं और एक ठीक भी है क्योंकि हर चीज का मूलाधार हमारे अपने हृदय में ही है और हमारी आंतरिक दुनिया बाहर की दुनिया से बहुत अधिक विस्तृत है तो वास्तव में हमारी शिक्षा ऐसी हो नहीं चाहिए कि वह हमें दोनों तरीकों से चीजों को देखना सिखा सके एक है बाहर से देखना जैसे सामने की इमारत कितनी सुंदर है उसकी कार्य कारीगरी में इस्तेमाल किया गया माल उसकी मजबूती उसकी इंजीनियरिंग इत्यादि विभिन्न वनस्पति अथवा जीव आदि को देखकर उन्हें पहचानना उनके महत्व को समझना उनकी कदर करना देखे बिना भी जानकारी रखना जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण कहलाता है।........ पहले आप शिक्षित होते हैं उसके बाद चीजों के प्रकट ना की प्रक्रिया शुरू होती है तब आप चीजों को बिना सीखें उन्हें समझने के काबिल हो जाते हैं ... ..तो केवल बौद्धिक क्षमता ही नहीं बल्कि इस प्रकार की संवेदनशीलता भी स्कूलों में विकसित होनी चाहिए।


इस पुस्तक में काफी कुछ है।आज इतना ही।वास्तव में शिक्षा में क्रांति की आवश्यकता है। आज का शिक्षित शिक्षक हुई समाज के व्यक्तियों वस्तुओं घटनाओं के प्रति वही भावना वही विचार रखता है जो एक आम आदमी रखता है यह अफसोस की बात है सामने वाले व्यक्ति को अशिक्षित व्यक्ति भी इंसान समझने की जरूरत नहीं करते बरन जाति मजहब लोह लालच आदि के आधार पर इंसानों से आचरण में उतार चढ़ाव रखते हैं यह सोच तो रखना बहुत ही दूर की बात --सागर मे कुंभ कुंभ में सागर . ...उदारचरितानाम तू वसुधैबकुटुंबकम...आदि आदि।


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