गुरुवार, 16 जुलाई 2020

ज्योति+ईष = ज्योति संकेत .......अन्तर्मुखीता::अशोकबिन्दु

ज्योतिष!!!
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अभी कुछ दिन पहले एक घटना घट जाने पर एक मतभेदी कह रहे थे ,ज्योतिषाचार्य सब कहाँ चले गए?उन्होंने पहले ही इस घटना होने का जिक्र क्यों नहीं किया?शायद उनका स्तर अभी इस वेदांग खण्ड तक का अहसास कराने में असमर्थ है??

                हमारा वेद कोई पुस्तक नहीं है,पुस्तक तो मात्र  उसका शब्दों में अभिव्यक्ति की कोशिश मात्र है.जो कण कण में व्याप्त  है उसमें व सृष्टि व प्रलय के वक्त जी स्थिति है,उसके अहसास में जीना ही वेद है,लयता है,ज्ञान है,प्रेम है,आकर्षण आदि है.जो हमारी इंद्रियों, दिल दिमाग से परे है.जगदीश चन्द्र बसु ने पेंड पौधों में भी सम्वेदना को पाया.. उन पेंड पौधों में न दिल दिमाग है न इंद्रियां... आज कल भी कहते मिल जाते है कि हम तो सनातनी है,लेकिन वे चिपके जातीय-मजहबी कर्मकांडों, धर्म स्थलों आदि में है..हम अनेक बार कह चुके हैं-वेद की स्थिति में पहुंचने के बाद सनातन का अहसास शुरू होता है...

@@ वेदांग@@@

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 वेदांगो की कुल संख्या 6 है, जो इस प्रकार है-

(1)शिक्षा -
वैदिक वाक्यों के स्पष्ट उच्चारण हेतु इसका निर्माण हुआ। वैदिक शिक्षा सम्बंधी प्राचीनतम साहित्य 'प्रातिशाख्य' है।

(2)कल्प -
वैदिक कर्मकाण्डों को ,सम्पन्न करवाने के लिए निश्चित किए गये विधि नियमों का प्रतिपादन 'कल्पसूत्र' में किया गया है।

(3)व्याकरण -

इसके अन्तर्गत समासों एवं सन्धि आदि के नियम, नामों एवं धातुओं की रचना, उपसर्ग एवं प्रत्यय के प्रयोग आदि के नियम बताये गये हैं।पाणिनि की अष्टाध्यायी प्रसिद्ध व्याकरण ग्रंथ है।

(4)निरूक्त -

 शब्दों की व्युत्पत्ति एवं निर्वचन बतलाने वाले शास्त्र 'निरूक्त' कहलातें है। क्लिष्ट वैदिक शब्दों के संकलन ‘निघण्टु‘ की व्याख्या हेतु यास्क ने 'निरूक्त' की रचना की थी, जो भाषा शास्त्र का प्रथम ग्रंथ माना जाता है।

(5)छन्द -

वैदिक साहित्य में मुख्य रूप से गायत्री, त्रिष्टुप, जगती, वृहती आदि छन्दों का प्रयोग किया गया है। पिंगल का छन्दशास्त्र प्रसिद्ध है।

(6)ज्योतिष -

 इसमें ज्योतिष शास्त्र के विकास को दिखाया गया है। इसकें प्राचीनतम आचार्य 'लगध मुनि' है।

   

    यहां पर हम फोकस ज्योतिष पर डालना चाहते हैं.हमारे पास पड़ोस ऐसे व्यक्ति होते रहते है,जो बताते रहते हैं-अरे ये घटना घट गई हमने तो ऐसा ऐसा सपना देखा था..... हम भी इस ओर बढ़ रहे हैं!!हमारे पास पड़ोस, हमारे साथ, हमारे परिजनों के बीच जो घटनाएं घटती रही हैं उसका हम पूर्व आभास पाते रहे हैं..हम स्थूल नेटवर्क से तो जुड़े होते हैं लेकिन अपने  सूक्ष्म जगत से जुड़ने का प्रयत्न भी नहीं करते!!मन व सूक्ष्म प्रबन्धन की यदि शिक्षा पर भी जोर दिया जाय जगत की सभी समस्याएं खत्म हो जाएं.. हम सब कुछ पा लेना तो चाहते हैं लेकिन अभी हम अपनी व अपनी परिजनों की ही सम्पूर्णता(अल/all/आदि) से जुड़े नहीं हैं.इसलिए सन्तों ने कहा है जिसने अपने को जान लिया वह जगत को भी जानने की ओर भी बढ़ जाएगा.. इस प्रेरणा से ही हमने एक fb ग्रुप #खुदयाखुदानजातिनपन्था बनाया. हमारे पिता जी जब स्थूल शरीर छोड़ने को थे तो एक रात हम सूक्ष्म जगत में पाए कि कुछ प्रकाश आकृतियां कह रहीं थी-आपके पिता जी शरीर त्याग दे तो कोई  दिक्कत टी नहीं आपकी?? हम उस वक्त सूक्ष्म से भी आगे की यात्रा पर थे, ऐसे में हम कैसे कह सकते थे-लाभ हानि, अच्छा बुरा की बात??जो है सो है???देवोत्थान एकादशी का आध्यात्मिक मतलब नहीं समझते, देव प्रतिष्ठा आदि का मतलब हम सम्पूर्णता की द्वष्टि से नहीं समझते.. दुनिया हम आचरण के आधार पर व्यक्ति को दो भागों में ही बांटते हैं-सुर व असुर.हम अभ्यासी हैं.न धार्मिक न आध्यात्मिक, न ईश भक्त न जाति पन्थ प्रेमी न  धर्म स्थल प्रेमी आदि....हम अपने अंदर की शक्तियों को तो पहले पहचाने!!!जर्मनी के वुल्फ़समैसिंग ने तो अपनी संकल्प/धारणा शक्ति  को जगा कर काफी कुछ कर डाला और समाज राज्य के दबंगो, तानाशाहों तक को हिला कर रख दिया.. अपनी धारणा से ही दूसरों की धारणा तक बदलने का काम कर डाला..ज्योतिष का मतलब हमारी नजर में ये है कि जो कण कण में व्याप्त है यदि हम उससे जुड़ने का प्रयत्न करने लगें तो हमे पूर्वाभास स्वत: होने लगता है..
#अशोकबिन्दु




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