जताना हमें आता नहीं, बताना हमें आता नहीं.......अशोकबिन्दु!!
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हमने धर्म स्थलों में आश्रमों, गुरुद्वारों को ही चाहा है।
हमें वहां देखा है कि बस कुछ लोग लगे रहते हैं-सेवा, सद्भावना में।जताना नहीं बताना नहीं।
हजरत किबला मौलवी हाजी अली अहमद खान साहब रायपुर ई के शिष्य श्री रामचंद्र जी महाराज फतेहगढ़ की याद में शाहजहांपुर की धरती पर सन 1945 में श्री रामचंद्र मिशन की स्थापना करने वाले बाबूजी महाराज ने कहा है शिक्षित व्यक्ति के अधिकार खत्म हो जाते हैं उसके तो सिर्फ कर्तव्य कर्तव्य रहते हैं।
हमने विभिन्न संस्थाओं में देखा है कुछ लोग संस्था के प्रमुखों ,व्यवस्थापको के सामने ना जाने क्या क्या जताते रहते हैं लेकिन किसी ने कहा है अपना बड़प्पन हांकना अपनी हरकतों को जताना आदि व्यक्ति की आंतरिक कमजोरी को ही दर्शाता है मुख्य रूप से अपने आत्मिक विकास के लिए आध्यात्मिक विकास के लिए।
हम इस पर विचार करते हैं कि बाबूजी महाराज ने जो कहा है की शिक्षित व्यक्ति के अधिकार खत्म हो जाते हैं सिर्फ कर्तव्य कर्तव्य रहते हैं, यह वास्तव में महत्वपूर्ण कथन है हम कहते रहे हैं शिक्षित होना एक क्रांतिकारी घटना है और दुनिया में सबसे बड़ा कलंक वर्तमान के शिक्षित व्यक्ति हैं जिनके रहते दुनिया की व्यवस्थाएं सुधर नहीं पा रही हैं सोलवीं सदी से जिस विकास की शुरुआत हुई है उस विकास ने मनुष्य को मनुष्य से दूर कर दिया है मनुष्य ने स्वयं को अपने से दूर कर लिया है मनुष्य ने अपने को अंतर्ज्ञान से दूर कर लिया है मनुष्य ने अपने को मन प्रबंधन प्रकृति प्रबंधन से अलग कर लिया है उसका विकास सिर्फ निर्जीव वस्तुओं के लिए निर्जीव वस्तुओं को एकत्रित करने के लिए निर्जीव वस्तुओं को एकत्रित करने के लिए अध्यात्म मानवता प्रकृति संविधान आदि को नजरअंदाज करने के लिए मात्र रह गया है।
आज की तारीख में बस कुदरत की नजर में नहीं विधाता की नजर में नहीं जीना चाहता।
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हमने धर्म स्थलों में आश्रमों, गुरुद्वारों को ही चाहा है।
हमें वहां देखा है कि बस कुछ लोग लगे रहते हैं-सेवा, सद्भावना में।जताना नहीं बताना नहीं।
हजरत किबला मौलवी हाजी अली अहमद खान साहब रायपुर ई के शिष्य श्री रामचंद्र जी महाराज फतेहगढ़ की याद में शाहजहांपुर की धरती पर सन 1945 में श्री रामचंद्र मिशन की स्थापना करने वाले बाबूजी महाराज ने कहा है शिक्षित व्यक्ति के अधिकार खत्म हो जाते हैं उसके तो सिर्फ कर्तव्य कर्तव्य रहते हैं।
हमने विभिन्न संस्थाओं में देखा है कुछ लोग संस्था के प्रमुखों ,व्यवस्थापको के सामने ना जाने क्या क्या जताते रहते हैं लेकिन किसी ने कहा है अपना बड़प्पन हांकना अपनी हरकतों को जताना आदि व्यक्ति की आंतरिक कमजोरी को ही दर्शाता है मुख्य रूप से अपने आत्मिक विकास के लिए आध्यात्मिक विकास के लिए।
हम इस पर विचार करते हैं कि बाबूजी महाराज ने जो कहा है की शिक्षित व्यक्ति के अधिकार खत्म हो जाते हैं सिर्फ कर्तव्य कर्तव्य रहते हैं, यह वास्तव में महत्वपूर्ण कथन है हम कहते रहे हैं शिक्षित होना एक क्रांतिकारी घटना है और दुनिया में सबसे बड़ा कलंक वर्तमान के शिक्षित व्यक्ति हैं जिनके रहते दुनिया की व्यवस्थाएं सुधर नहीं पा रही हैं सोलवीं सदी से जिस विकास की शुरुआत हुई है उस विकास ने मनुष्य को मनुष्य से दूर कर दिया है मनुष्य ने स्वयं को अपने से दूर कर लिया है मनुष्य ने अपने को अंतर्ज्ञान से दूर कर लिया है मनुष्य ने अपने को मन प्रबंधन प्रकृति प्रबंधन से अलग कर लिया है उसका विकास सिर्फ निर्जीव वस्तुओं के लिए निर्जीव वस्तुओं को एकत्रित करने के लिए निर्जीव वस्तुओं को एकत्रित करने के लिए अध्यात्म मानवता प्रकृति संविधान आदि को नजरअंदाज करने के लिए मात्र रह गया है।
आज की तारीख में बस कुदरत की नजर में नहीं विधाता की नजर में नहीं जीना चाहता।
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