शनिवार, 18 जुलाई 2020

हम किसी व्यक्ति का विरोध क्यों करें?किसी से बोलना बन्द क्यों करें?:::अशोक बिंदु

सन्त परम्परा ही वास्तव में जीवन के करीब हमें लाती है।
सन्त परम्परा में रहा है-न काहू से दोस्ती न काहू से बैर।
जब सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर ,तो किससे बैर किससे दोस्ती?
सनातन तो अभेद है,अद्वेत है। वह एक दशा है,स्थिति है।जो हमारे अंदर व जगत के अंदर है। जो स्वतः है,निरन्तर है,विकासशील है।



सनातन में विरोध की बात हमारी नजर में बेईमानी है।सबका अलग अलग स्तर होता है,समझ होती है।ऐसे में न विरोध न समर्थन।सिर्फ कर्तव्य, सेवा, मानवता, प्रेम....


हर स्तर पर सबके अलग अलग मत होते हैं।अलग अलग समझ का स्तर होता है।मास्टर का कार्य सभी को ऐसा माहौल देना, जिससे सब बन्ध सके।


एक स्कूल होता है।अनेक क्लास होते हैं।हर क्लास इसलिए मतभेद रखें कि हमारे क्लास में ये है ,तुम्हारे क्लास में है।और संघर्ष को अंजाम दे?सरासर मूर्खता है।

विरोध कैसा?जब स्तर ही अलग अलग...


कुदरत का ही हिस्सा हम है।कुदरत में विविधता, विभिन्नता होती ही है।लेकिन इस विविधता, विभिन्नता के बाबजूद भी एकता है।अनेकता में जो एकता महसूस करता है,वह विरोध में नहीं जा सकता।

वास्तविक ज्ञान तो हमारा अनुभव व अहसास है।आगे चल आत्मा हैं ...इससे भी आगे  परम्आआआत्मा है... इससे आगे भी है....निरन्तरता है, विकासशीलता है। विकसिता नहीं।  ऐसे में विरोध किसका।जो जिस स्तर जिस बिंदु पर है ,उस पर वही की बात कर रहा है। किसी ने कहा है कि निजता अपनी आत्मा है।निजता अपनी स्व तन्त्रता है। कोई हमारे विरोध में खड़ा है,सब हमारे विरोध में खड़े हैं। इससे क्या? हम अपनी निजता आत्मा  को क्या भूल जाएं?


               हम जो सोंचते हैं, यदि वह सम्पूर्ण कायनात, सम्पूर्ण प्रकृति  को नजर में लाकर है तो फिर ऐसे में यदि आप सिर्फ अपने हाड़ मास शरीरों  व उसके आचरण ,भौतिक संसाधन के लिए जीते हो तो हममें आपमें विरोध क्यों? प्रथम ग स्नातक क्लास में विरोध क्यों?तुलना क्यों?विविधताओं में विविधताओं से टकराना क्यों? विविधता में एकता के  दर्शन क्यों?




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