सोमवार, 20 जुलाई 2020

धर्म क्या है?::अनिल गंगवार

------------------------ धर्म  क्या है ? ------------------------
          ' जहाॅ सभी धर्मो का अन्त होता है , वहाँ से आध्यात्मिकता का प्रारंभ होता है। जहाँ आध्यात्मिकता का अन्त होता है , वहाँ से सत्य का उदय होता है । जहाँ सत्य का अन्त होता है, वहाँ से आनन्द की शुरुआत होती है । '
                                                            - बाबूजी
          धारयति इति धर्माः अथार्त जो धारण किया जाता है वही धर्म कहलाता है । अब यह सबाल उठता है  क्या धारण करना चाहिए ?  क्योंकि धारण करना सही भी हो सकता है और गलत भी। सत्य , अहिसा , दया , क्षमा , संतोष , तप आदि  सदगुणों को धारण करना ही मानव धर्म है । मनु ने धर्म के दस लक्षण बताए हैं:-
              धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।
              धीर्विद्या सत्यमक्रोधो, दशकं धर्मलक्षणम्।।
अर्थात -
1 . धृति - धैर्य
2 . क्षमा - दूसरो के अपराध को माफ करना।
3 . दम - अपनी वासनाओ पर नियन्त्रण करना।
4. अस्तेय -चोरी न करना।
5. शोच - आंतरिक एंव बाहरी सफाई करना।
6. इन्दिय निग्रहः - अपनी इन्द्रियों को वश मे रखना।
7. धी - बुद्धिमता का प्रयोग करना।
8. विधा - अधिक से अधिक ज्ञान अर्जित करना।
9. सत्य  - मन , वचन और कर्म से सत्य का पालन करना।
10. अक्रोध - क्रोध न करना।
            धर्म का मूल स्वभाव खोज है । जब भी हम धर्म  के बारे में  चिन्तन करते है तो ऐसा प्रतीत होता होता कि हमे ईश्वर को खोजना है । मनुष्य इन दस सदगुणों को धारण कर सहजता से ईश्वर साक्षात्कार कर सकता है ।  मानवता मे इन लक्षणों का जब ह्रास होने लगता है  तब स्वयं परमात्मा को इस धरा पर आना  पडता है । जैसा कि भगवान श्रीकृष्ण ने गीता मे कहा है -
           यदा - यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
          अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम ।।
          अर्थात- जब-जब पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है और अधर्म आगे बडता है , तब - तब मै इस पृथ्वी पर जन्म लेता हूँ ।
          अतः हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते है कि इन दस सदगुणों को धारण करने को ही धर्म कहते है । न कि हिन्दू , मुस्लिम , सिख , ईसाई आदि को । यह तो सम्पदाय या समुदाय है । सम्पदाय का अर्थ होता है-  एक ही  परम्परा को मानने वालो का समूह ।
          इस लिए बाबूजी ने कहां है - जहाँ धर्म का अन्त होता है वहाँ से आध्यात्मिकता का प्रारंभ । जब हम इन दस सदगुणों को अपने जीवन में आत्मसात कर लेते हैं । तब हम आध्यात्म के क्षेत्र में प्रवेश कर जाते है । इनको गृहण करने का सबसे उपयुक्त साधन गुरू के दिशा- निर्देशन मे अपनी साधना करना है । हम गुरु की कृपा और ईश्वर की भक्ति से ईश्वर साक्षात्कार कर सकते है । जो कि सभी सम्प्रदायों का मुख्य उद्देश्य रहाँ है और इसी कारण से सम्प्रदायों की उत्पत्ति हुई ।
          जब साधक आध्यात्मिकता क्षेत्र में प्रवेश कर ईश्वर साक्षात्कार कर लेता है तब वह सत्य के निकट पहुँच जाता है । क्योंकि सिर्फ ईश्वर ही एक मात्र सत्य है वाकी सब मिथ्या है । इस लिए बाबूजी ने कहाँ जहाँ आध्यात्मिकता का अन्त होता है वहाँ से सत्य का उदय होता है ।
          जब सत्य का अन्त होता है । वहाँ से आनन्द की शुरूआत होती है । अथार्त आत्मा परमात्मा मे विलीन हो जाती है । तब आत्मा का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है । यही आदि काल से मानव का उद्देश्य रहाँ है।




                                           - अनिल गंगवार, बहेडी

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