शनिवार, 18 जुलाई 2020

सनातन तो अद्वेत है, भेद मुक्त है।ऐसे में हमारा मिशन क्या है?::अशोक बिंदु

ज्ञान?
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गीता के अध्याय 4 में 19 श्लोक के माध्यम से योगेश्वर श्री कृष्णा ने बताया है कि जिस पुरुष द्वारा संपूर्णता से आरंभ किया हुआ नित्य कर्म का आचरण क्रमशः उत्थान होते-होते इतना सूक्ष्म हो गया की कामना और संकल्प को सर्वथा शमन हो गया।

 उस समय जिसे वह जानना चाहता है उसकी पहचान होती हो जाती है। उसी अनुभूति का नाम ज्ञान है।
 13 अध्याय में ज्ञान को परिभाषित किया है। आत्मज्ञान में एक रस स्थिति और तत्व के अर्थ स्वरूप परमात्मा का प्रत्यक्ष दर्शन ज्ञान है। क्षेत्र- क्षेत्रज्ञ के भेद को विदित कर लेने के साथ ही ज्ञान है।

गीता के अध्याय 4 इस लोक 19 में पुरुष द्वारा संपूर्णता से आरंभ किया हुआ कर्म का आचरण इसी को सहज मार्ग में दूसरी तरह से पेश किया गया है। हम सब अभ्यासी जिस पर अमल करने की कोशिश करते हैं। आखिर में संपूर्णता क्या है ?
हम व जगत के तीन स्तर हैं- स्थल, सूक्ष्म व कारण। हर वक्त हमें संज्ञान रहना चाहिए ये। लेकिन बड़े बड़े ब्राह्मण ,पण्डित ,कथावाचक आदि ही इस आधार पर जीवन नहीं जीते। सहज मार्ग में ये नजरिया अति आवश्यक है।

 हजरत किबला मौलवी फजल अहमद खान साहब रायपुर के शिष्य श्री रामचंद्र जी महाराज फतेहगढ़ की याद में सन 1945 में शाहजहांपुर की धरती पर स्थापित श्री राम चंद्र मिशन श्रीमद्भागवत गीता के यज्ञ अर्थात प्रकृति अभियान के आधार पर है हम अपने आस-पड़ोस में देखते हैं कुछ लोग अपने ग्रंथों पर चिंता नहीं करते अपने ग्रंथों का अध्ययन नहीं करते लेकिन वे श्री रामचन्द्र मिशन की आलोचना करते रहते है । वे स्वयं किस स्तर के है या किस स्तर की विचारधारा रखते है या वे सनातन की वकालत करते नजर आते है क्या सनातन सोच रखते है?


ग्रंथो से स्पष्ट होता है कि आत्मा ही सनातन है।हमारे करीब में जो भी है, उनमें आत्म ही सनातन है। वही आत्मीयता है।वही जगदीश चन्द्र बसु की संवेदना है। अपने को सनातनी कहने की वकालत करने वाले श्री राम चंद्र मिशन का विरोध तो करते हैं लेकिन ग्रंथों में सनातन किसे कहा गया है बे इससे अनजान हैं उन्हें इस पर भी आपत्ति है कि कोई मुसलमान सहज मार्ग में संत है ऐसे लोग सनातनी कैसे कोई एक व्यक्ति कहता है जो कुछ भी दिख रहा है सब कुदरत है हम सब जीव जंतु सब कुदरत है इस सबके बीच हमारे अंदर जगत के अंदर कुछ है जो सोता है निरंतर है वही सनातन है सागर में कुंभ कुंभ में सागर ऐसी दशा में जाने की कोशिश करता है वह सनातनी है कि नहीं इस पर भी चिंता नहीं करते प्रकृति को भेज में खड़ा करने वाले अपने को सनातनी कहते हैं अनेकता में एकता महसूस ना करने वाले अपने को सनातनी कहते हैं वसुधैव कुटुंबकम की बात करने वाले स्वयं संसार को भेद की नजर में देखते हैं सागर में कुंभ कुंभ में सागर की स्थिति का विरोध करने लग जाते हैं अनजाने में उनका सनातन कैसा?



गीता के अध्याय 14 में योगेश्वर श्रीकृष्ण कहते हैं- अर्जुन उन बयानों में भी परम उत्तम ज्ञान को मैं फिर भी तेरे लिए कहूंगा। योगेश्वर उसी की पुनरावृति करने जा रहे हैं। भली प्रकार चिंतन किया हुआ शास्त्र भी बार-बार देखना चाहिए। इतना ही नहीं जो जो आप साधना पथ पर अग्रसर होंगे ज्यों-ज्यों जो उस ईस्ट में प्रवेश पाते जाएंगे त्यों त्यों ब्रह्म में से नवीन नवीन अनुभूत मिलेगी।
 यह जानकारी सद्गुरु महापुरुष ही देते हैं।

 जीवन तो निरंतर है ।शाश्वत है ।
वहां कुछ भी विकसित नहीं।
 विकसित होकर भी कुछ भी विकसित नहीं।
 विकासशील है .....निरंतर है ...यात्रा है।

 इसीलिए हम कहते हैं -हम अभ्यासी हैं। हम प्रयत्न शील हैं ।हम अभ्यास पंथ से हैं।

 जो लोग कहते हैं तुम्हारा मिशन क्या है?
 उन्हें स्वयं चिंतन मनन करना चाहिए ,अध्ययन करना चाहिए।
 अध्यात्म तर्क करने की चीज नहीं है ।अध्यात्म महसूस करने की चीज है ।

गीता के अध्याय 4 में बताया गया है जिस पुरुष द्वारा संपूर्णता से आरंभ किया हुआ नियत कर्म ।

आखिरी संपूर्णता क्या है?

 अभी तो हमारी कोशिश है संपूर्णता को विचारों कल्पना चिंतन मनन आज के माध्यम से जीवन के प्रत्येक लम्हा हरियाणा उससे जुड़े रहना।

वही सम्पूर्णता योग है।अल है।all है। हमारे व जगत के तीनों स्तरों-स्थूल, सूक्ष्म व कारण में संतुलन व अहसास।

कमलेश डी पटेल दाजी कहते हैं महत्वपूर्ण नहीं है कि आप आस्तिक हैं कि नास्तिक महत्वपूर्ण यह है कि आप अनुभव क्या करते हैं महसूस क्या करते हैं?





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