शनिवार, 18 अप्रैल 2020

19 अप्रैल 1983ई0::शाहजहाँपुर से फैली एक आध्यत्मिक सुगन्ध अब पूरी दुनिया में फैल चुकी है।शत शत नमन बाबू जी महाराज!!

19 अप्रैल 1983ई0::बाबू जी महाराज पुण्य दिवस!!शत शत नमन!!!उनकी याद में ...
""""""""""""""""""""""""""""""""""""अशोकबिन्दु भइया






जीवन के पथ पर अनेक हजारों आते है और हजारों चले जाते हैं।लेकिन जीवन पथ पर निशान कुछ ही छोड़ जाते हैं।भारत भूमि सन्तों की भूमि है।


उत्तर प्रदेश (भारत) के शाहजहाँपुर की धरती भी अनेक महापुरुष देती रही है।सुना जाता है पांचाल राज्य में शाहजहाँपुर का नाम अंगदीय था जो शाहजहाँ पुर - पुवायां मार्ग पर गोमती नदी के किनारे बKIसा था। वर्तमान में ये नगर अनेक स्थितियों के लिए जगत विख्यात है।यहां से स्थापित श्रीरामचन्द्र मिशन की शाखाएं आज की तारीख में विश्व के लगभग 150 देशों में पहुंच चुकी हैं। इस मिशन की स्थापना हजरत क़िब्ला मौलबी फ़ज़्ल अहमद खान साहब रायपुरी के शिष्य श्रीरामचन्द्र जी महाराज फतेहगढ़ उर्फ लाला जी महाराज के याद में शाहजहांपुर के बाबू जी महाराज ने सन1945 में की थी।


बाबू जी महाराज/रामचन्द्र महाराज शाहजहाँपुर वाले  के पिता राय बहादुर श्री बद्री प्रसाद शाहजहाँपुर में 1000 गांवों के जमींदार थे। वे नगर के प्रतिष्ठित वक़ील व स्पेशल आनरेरी मजिस्ट्रेट भी थे। बाबू जी बचपन से ही आध्यत्म में हो गए थे। वे ग्रहस्थ सन्त थे।उनकी धर्म पत्नी भगवती देवी सक्सेना का देहांत सितम्बर 1949 में हो गया था1।उनके सभी बच्चे बहुत छोटी उम्र के थे। जिनकी परवरिश बाबू जी की माता श्रीमती जशोदा देवी ने की। विभिन्न समस्याओं के बाबजूद उन्होंने मिशन की स्थापना 21 जुलाई 1945 को की।सन1977 तक वे अभ्यासियों के रहने खाने पीने की व्यवस्था घर पर ही करते थे।हालांकि 1974ई0 में  हरदोई मोड़ पर जमीन खरीद कर सन1976ई में स्वयं आश्रम का उदघाटन किया था। लोगों की संख्या इतनी बढ़ गई थी कि तब स्कूलों व धर्मशालाओं में उत्सब में ध्यान में बैठने के लिए कहते थे। उन दिनों हमारे(अशोक कुमार वर्मा के) पिता जी श्री प्रेमराज वर्मा 1967-68 में बीए व 1969 में बी एड के क्लासेज,एस एस कालेज, अजीजगंज के दौरान बाबू जी की गतिविधियों व उनके नजदीक आये थे। उन दिनों बाबूजी के पुत्र श्री सर्वेश गांधी फैजान कालेज में biology के छात्र थे। सर्वेश जी कहते हैं-

"बाबू जी महाराज हम लोगों को समय समय पर आकर देखते रहते थे।हम पढ़ रहे है कि नहीं। घर में काफी लोग रहते थे।अंदर दद्दा जी का परिवार बाबूजी से झगड़ा किया करते थे।मालिन बाबू जी की सेवा में लगी रहती थी।बाबू जी महाराज बड़े संकोची थे। वर्ष 1969-70ई0 में मई के महीने में मेरे भाई उमेश की शादी हो गयी थी।जो मद्रास में टी. टी. के. में कार्य करते थे।थोड़े समय तक वह श्री पार्थसारथी राजगोपालाचारी के यहां रहते थे।.....बाबू जी के साथ उस समय रात में जगदीश लाल सोते थे।वह भी बाबू जी के साथ हनुमान जी की तरह लगे रहते थे।इसलिए बाबू जी महाराज उनको हनुमान कहते थे।.....बात 19फरबरी1969 की रही होगी।बाबू जी के पास एक पत्र भाई राघवेंद्र राव जी का गुलबर्ग से आया।बाबू जी को उन्होंने लिखा कि लोग मुझसे living guru का मतलब पूछ रहे थे।भाई ने जवाब दिया कि बाबू जी महाराज मेरे लिए सब कुछ  है।फिर उन्होंने बाबूजी को पत्र लिखकर बात confirm की बाबूजी ने अपने पत्र में उनके परिवार की कुशल क्षेम पूछी फिर living guru का मतलब बताया कि मैं जिंदा आया हूँ जिंदा ही जाऊंगा।मरने का सवाल ही नहीं उठता।"



बाबू जी कहते थे-मन को सराय मत बनाओ।शरीर तो मन का राजा है।मन का राजा आत्मा है।मन में आत्मा का प्रकाश चमकने दो।मन को संसार की धूल से गन्दा मत करो।बाबू जी के समय के जब अभ्यासी हमे मिलते है तो बड़ी खुशी होती है।तब और जब वे बाबू जी से जुड़ी यादें शेयर करते हैं।हम तो उन दिनों अप्रैल 1983 को कक्षा पांच की वार्षिक परीक्षा की तैयारी में थे।कुछ कुछ याद है, हमारे आस पास अमर उजाला अखबार आया करता था। पिता जी उनकी चर्चा करते रहे थे।

इन दिनों जब विश्व कोरोना संक्रमण से ग्रस्त है तो अनेक शंकाओं, तृतीय विश्व युद्ध, जैविक युध्द, उत्तर से चले विकार, धूमकेतु, सूरज के चुम्बकीय बादल, इंसान की साम्प्रदायिकता, जातिवाद, सत्तावाद, पूंजीवाद,भीड़ हिंसा आदि के साथ सत्य के उदय पुस्तक के आखिरी चेप्टर 'मेरी दृष्टि' पर कल्पनाएं मन में साकार होने लगती।बाबू जी का कहना था-आगामी विश्व का ढांचा राख एवं कंकालों पर निर्मित होगा।भारत वर्ष में अध्यत्मवाद पर आधारित एक सभ्यता का प्रादुर्भाव होगा जो कालांतर में विश्व सभ्यता के रूप में विकसित होगी।


आज हम बाबू जी से यही प्रेरणा पाते हैं कि जो है सो है।हम सतत स्मरण में जाने को  प्रयत्नशील रहें।मन को सराय न बनाए।
शत शत नमन!! बाबू जी महाराज!!@

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