गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

आसमान के लिए कुछ करना है तो अपने अपने घर के झरोखों से आसमान को ताकते ये कहना छोड़ो की मेरा आसमान तो ऐसा है औऱ तेरा तो औऱ ऐसा।अपने घर व झरोखों की मर्यादाओं को त्यागना ही कुर्बानी है:::अशोकबिन्दु भइया

05.30pm!गुरुवार!!
चंडिका नवमी, वैशाख नवमीं!
16अप्रैल 2020ई0!!
"सूरज से सिर्फ एक ही किरण पृथ्वी की ओर चले तो क्या धूप होगी?सागर से उठी सिर्फ एक लहर क्या करेगी?ऐसा सम्भव नहीं है। इसलिए 'मैं','मेरा','मेरे','तू','तेरा','तेरे' को त्यागो।आओ चल पड़ें-'हम सब' की ओर।........आदि व अनुशासन, सुप्रबन्धन, आजाद हिंद सरकार की व्यवस्था कर साथ।कुदरत व दुनिया को हम सब से ही,भारतीयों से ही उम्मीदें हैं।

#विश्वहिंदीआध्यत्मसाझाप्रचारक

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कुदरत व दुनिया के दिल पर कौन राज करता है?कुदरत व दुनिया का दिल पता है?हमारा सुप्रीम साइंस कहता है-जो भी है उसकी साधरणतया तीन अवस्थाएं हैं-स्थूल, सूक्ष्म व कारण।आप तो शायद उसे मूर्ख कहने लगोगेजो चौराहे पर चीख चीख आनंद में कहने लगे कि हमें तो अब ईंट में भी रोशनी दिखती है।सभी में रोशनी दिखती है।आप उसे मूर्ख कहोगे वह आपको कि दुनिया को आप देख ही नहीं पा रहे हो। आपकी आस्तिकता भी तब खतरनाक ही है असल के लिए!यथार्थ के लिए!आप बौखला पड़ते हो, जब कोई आपके देवी देवता, पैगम्बरों, अवतारों, भगवानों पर अंगुली उठता है।वास्तव में वह आप पर अंगुली उठता है।उसकी यात्रा तो सूक्ष्म व कारण की ओर हो सकती है लेकिन जरूरी नहीं कि आपकी हो?आपकी यात्रा जरूरी नहीं अभी स्थूल में ही ईमानदारी से हो?हाड़ मास,दिल, दिमाग, हाथ पैर आदि न हिन्दू है न मुस्लिम......न ब्राह्मण न शूद्र.... न हिंदुस्तानी न पाकिस्तानी!!अभी आप स्थूल में ही ईमान नहीं लाए हो। कुदरत का दिल कहाँ पर है?दुनिया का दिल कहाँ पर है?कोरोना संक्रमण ने दुनिया मे सभी इंसानों को,उनकी कृत्रिम व्यवस्था को झकझोर दिया है। लेकिन दुनिया के दिल तक ,कुदरत के दिल तक कौन पहुंचा है। #हृदयकाअभियान कौन समझा है?



 जगदीश चन्द्र बसु का नाम तो सुना ही होगा।
वे कहते हैं-पेड़ पौधों में भी सम्वेदना है।जहां जहां चेतना है, वहां वहां एक स्थिति होती है।जब चेतना है,तो उसके अस्तित्व का अहसास भी होना चाहिए।महसूस होना चाहिए। हममें, जगत की वस्तुओं।मेँ कुछ तो कामन है।जो हम सब को, जगत को आपस में जोड़ता है।उस जोड़ का अहसास किसे है?फिजिक्स भी वहां तक पहुंचने की कोशिस कर रही है।गुरुत्वाकर्षण तक पहुंच गयी है।ऊर्जा तक पहुंच गयी है।तरंगों, स्पंदन,कम्पन तक पहुंच गई है। सुप्रीम साइंस आध्यत्म अनाहत चक्र पर जाता है।हृदय चक्र पर जाता है।जो अदृश्य सर्वव्याप्त है- उसका अदृश्य हृदय जगत भी है।इस पर अनेक शोध भी आये हैं।जगत का सूक्ष्म रूप  प्रकाश,स्पंदन, कम्पन, तरंग की ओर संकेत करता है।वहीं से जुड़ाव को संकेत दिल करता है। ब्रह्मांड की उतपत्ति पर विज्ञान भी अब अनन्त तरंगों, कम्पन, स्पंदन की ओर संकेत करता है। जिसमें जगत की लीनता को ही कुछ लोगों ने भक्ति/प्रेम कहा है।यहां तक कि आध्यत्म को ही प्रेम कहा है।पेड़ पौधों में स्थूल दिल नहीं होता लेकिन सम्वेदना होती है।


 पार्थसारथी राजगोपालाचारी जी की एक पुस्तक-'हृदय का अभियान' में कहा गया है--सहज मार्ग में प्रेम अनन्त यात्रा में जगत, ब्रह्मांड व जीव जंतुओं की लीनता है।उसमें हमारा साक्षी होना ही प्रेम है।सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर.... जैसी स्थिति । विज्ञान इस ओर अभी सिर्फ गुरुत्वाकर्षण तक ही पहुंच पाया है।अभी इस स्थिति से दूर है।जिसमें सारा जगत, ब्रह्मांड, हम आप रमे हुए हैं।


विश्व हिंदी साझा आध्यत्म प्रचारक!!इस सम्बंध में हमारी क्या कल्पना है? हमें अफसोस होता है कि जब अध्यात्म, मानवता,ईश्वर, विश्व बंधुत्व आदि एक है तो आध्यत्म की संस्थाएं अनेक क्यों?हमारा धर्म एक ही है तो फिर अनेक धर्म क्यों?वास्तव में हम असल के प्रति ईमान नहीं रखते।जो हम ने स्वयं खड़ा किया है, उस पर फूलते है।लेकिन कब तक खड़ा रहेगा?जिसे कुदरत ही सिर्फ धराशयी कर दे, तुम्हारा वह सिर्फ भ्रम है। अनेक संस्थाएं खड़ी कर दी धर्म की आध्यत्म की।हमारा, तुम्हारा, मेरा तेरा......!!?जो एक ही है,उसके किए अनेक क्यों?इसका मतलब है कि एक पर अभी पहुंच नहीं।एक पर अभी पहुंच नहीं। लेकिन भविष्य ऐसे में किसके साथ?जो सब को अपने में सिमटे है, उसको लेकर जो चलेगा वही का भविष्य है। नहीं तो भूतगामी।

प्राणियो ने जो बनाया है उसके  अलावा जो  भी बना है वह क्या सब गलत है?या कुछ गलत या कुछ ठीक है?अगर आप ईश्वर को मानते हो तो ये आपका भ्रम है कि उसने जो भी बनाया है, उसमें गलत भी है और ठीक भी।तो फिर आपका ईश्वर ऐसा क्यों है?दरअसल वह ठीक है।उसने जो भी बनाया है गलत या ठीक नहीं बनाया है।गलत ठीक की सोच तो हमारी है।काफिर गैर काफिर की सोच हमारी है। 

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