गुरुवार, 2 अप्रैल 2020

जो हम कर रहे हैं, उसके विपरीत भी है।जब हम असन्तुष्ट होंगे, विकार युक्त होंगे तो वही विपरीत हमारी ढाल होगा।सन्तुलन करना सीखो।...अशोकबिन्दु भैया

भूख है तो भोजन भी है।प्यास है तो पानी भी है।कोई समस्या है तो निदान भी है।भीड़ में यदि हम विकार युक्त हुए हैं तो उसका अपोजिट एकांत भी निदान युक्त भी है। ग्रंथो में सन्तुलन/तटस्थता/साम्य की बात मिलती है।अति ही जहर है। ब्रिटेन में जब बैठे बैठे कम्प्यूटर पर कार्य करते विकार पैदा होने लगे तो खड़े खड़े अब काम करने लगे।हम जिस हाल में जीते है,उसका नगेटिव भी है। अति  किसी की ठीक नहीं। आज जो तुम्हारे विपरीत खड़ा है वह भी जीवन का हिस्सा है।आज जो तुम्हें दिखाई नहीं दे रहा है, उसके विपरीत भी कुछ है।स्थूल है तो सूक्ष्म भी है।धरती पर कुछ भी निरर्थक नहीं है।
गीता के विराट रूप, श्री अर्द्ध नारीश्वर अवधारणा,सात शरीर व कुंडलिनी जागरण, अनन्त यात्रा आदि को  समझने की जरूरत है।आत्मा व आत्मा की यात्रा को समझने की जरूरत है। हाड़ मास शरीर के परे, बुद्धि से परे भी कुछ है।जो अनन्त प्रवृतियां रखता है।जो अनन्त  प्रवृतियां रखता है,उसके सामने सीमित प्रवृत्तियों धारक की क्या औकात? समझो तभी न@अभी तक हम जो जिए हैं वह सीमित प्रवृतियों तक का ही है।हमारे हाड़ मास शरीर, बुद्धि, दिमाग, इंद्रियों, हमारे कर्म कांडों आदि को एक हद है।जिसकी सीमित हद है,तो उसमें लीन रहते कब तक काम चलेगा?तुम्हारे दिमाग ने विकास को कुदरत के विनाश पर ला खड़ा किया है,लेकिन कब तक?कुदरत का एक धक्का बर्दास्त न होगा।

भाषणबाजी, युद्ध आदि से ही दुनिया सुधरने को होती तो सुधर चुकी होती। गांधी ने कहा है-वातावरण महत्वपूर्ण है।वातावरण ऐसा हो कि कोई गुंडा अपनी मनमानी न कर पाए।कोई मन मानी न कर पाए। लेकिन सत्तावाद, पूंजीवाद, जातिवाद, पुरोहितबाद.... कोई भी वाद दुनिया का भला नहीं कर सकता।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें