शनिवार, 4 अप्रैल 2020

आओ अन्तरदीप जलाएं:::अशोकबिन्दु भैया

आओ दीप जलाएं:बाह्य दीप जलाते जलाते अंतर दीप जल जाए और अंतरदीप जलाते जलाते बाह्य दीप!!
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 दीप जलाने की परंपरा बहुत प्राचीन ही नहीं वरन विश्व व्याप्त प्राचीन परंपरा है। सन्त परम्परा में इसे सूक्ष्म जगत में भी ले जाया गया है।हमारे तीन स्तर हैं-स्थूल, सूक्ष्म व कारण। दीप जलाने सिर्फ स्थूल क्रिया ही नहीं है।यदि हम अंतर दीप जलाने के प्रयत्न में भी लगें हैं। युरोशलम में जब पहली बार पूर्व/हिंद महाद्वीप के कुछ सन्त उस बालक के पार पहुंचे तो इसलिए नहीं पहुंचे थे कि उसमें प्रभु बसता है।वरन इसलिए कि उसमें अन्य बालकों की अपेक्षा वहां उसके अंदर भावनाएं ज्यादा थीं।वह में आत्मा का प्रकाश तेजी से प्रकाशित होने की संभावनाएं छिपाए था।वह मानसिक रूप से बिल्कुल तैयार था। फिर वह40 साल बाद वहां नजर आता है।पुरातत्व विभाग कहता है कि वह लगभग10 साल से 40 साल तक कश्मीर में रहा।सूली लगने के बाद फिर वह कश्मीर में। हम सब के अंदर सम्भावना छिपी है-परमात्मा होने की।आध्यत्म की गली में आत्मा ही महत्व पूर्ण है।प्राथमिकता आत्मा की है। वही है जब तक अंदर, तब तक ये हाड़ मास शरीर है।और 99.08 प्रतिशत लोग को प्राथमिकता वह नहीं है। जब एक प्रतिशत से भी कम लोग आज कोरो-ना संक्रमण के कारण मृत्यु के गुफा में समा गए तो इतना कोहराम व व्यवस्था है।यदि ये प्रतिशत और बड़ा तो क्या होगा? हमारे कुकृत्य अब भी  किधर है। हम घर के अंदर होने के साथ अपने अंदर नहीं जा सकते। तो प्रकृति के बीच खुले आसमान के नीचे ही भौतिक दीप जलाने के बहाने अन्तरदीप की उपस्थिति का कम से कम विचार ही ले आएं। ये  दीप जलाना हमारे पूर्वजों की यही मनसा छिपाए था। इसे तुम अन्ध भक्ति कहो या मोदी भक्ति।मोदी तो अब है, आर एस एस अब है।जब मोदी न थे, जब आर एस एस न था, तुम भी न थे, तुम्हारी धारणा वाले दल व तुम्हारे आराध्य भी न थे तब भी ये परम्परा थी। समय समय के आधार पर अंधेरों को चीरने की परम्परा में परिवर्तन हुए लेकिन भौतिक अंधेरा चीरने का ही कार्यक्रम न था।

 दीनदयाल उपाध्यय का कहना था नीचे पायदान पर खड़ा व्यक्ति भी व्यवस्था में भागीदार होना चाहिए।जगत में जो भी है, जीवन यात्रा का हिस्सा है,उतार चढ़ाव है।चढ़ाव कैसे हो?सिर्फ अग्रिम बिंदुओं की ओर बढ़ना कैसे हो?जीवन के पथ पर जो हैं उनको साथ साथ ले आगे कैसे बढ़ा जाए?इसके लिए कार्यक्रम चाहिए।


पहले से ही अनेक सन्त उतर  दिशा से विनाश को आने की बात कहते हैं।मलेशिया हो या चीन या इससे भी आगे। नगेटिव पॉजीटिव साथ साथ चलता है।समस्या व समाधान साथ साथ चलता है। उत्तर में वे सूक्ष्म शक्तियां भी बसती है जो आप में, विश्व मे छिपी सम्भावनाओं को उजागर कर सकती है। जब एक प्रतिशत से भी कम लोग अभी कोरो-ना से लोग मृत्यु को प्राप्त हुए हैं तो ये हाल है यदि एक प्रतिशत से ज्यादा ये बढ़ा तो क्या होगा? कमलेश डी पटेल दाजी ने उस दिन अपनी वैश्विक वार्ता में कहा तब सिर्फ वर्तमान बचाव से काम नहीं चलने वाला।हमें आध्यत्म का भी सहारा लेना होगा। हम सिर्फ भौतिकताओं से नहीं हैं।हम अपने तीन रूप स्थूल, सूक्ष्म व कारण तो रखते ही हैं।वैसे हमारी चेतना के अनन्त बिंदु हैं।स्थूल में ,भौतिकता में हमारी एक हद है।एक हद के बाद हम फेल है।हमारा चेतना  जिस बिंदु जिस स्तर पर होता है, वहां से हमारी चेतना भी असफल होने लगती है।इसलिए चेतना को अग्रिम बिंदुओं पर भी पहुंचना आबश्यक है।हमारे समझ की माप हमारे चेतना के वर्तमान बिंदु तक ही होती है।इसलिए सन्तों की वाणियों को भी समझने की जरूरत है।हमारी हद कभी खत्म नहीं होती।अग्रिम परिबर्तन की तैयारी असफल होती है। अग्रिम परिबर्तन की ओर अग्रसर व्यक्तियों का प्रतिशत00 .12 प्रतिशत से आगे बढ़ाना होगा। ईसा मसीह के साथ उस वक्त 12 ही लोग साथ साथ थे लेकिन वह भी में से कुछ धोखेबाज भी।ये हमारी सामजिकता, हमारे सत्तावादियों, पूंजीवाद, जातिवाद, विभन्नता आदि के बीच निम्न स्तरीय है।अनेकता में एकता, विभन्नता एकता, सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर, उदार चरितानां तू बसुधैवकुटुम्बकम... आदि का भाव का साक्षी होने की भी जरूरत है।केवल अपने स्थूल या भौतिक उम्मीदों से काम नही चलना है।सूक्ष्म व कारण जगत को भी साक्षी बनाना है।


 आज के दिन 05 अप्रैल 1908 ई0  भारत के पहले दलित उप प्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम का जन्म हुआ था।उनका क्या दोष था?वे प्रधानमंत्री लायक थे?तुम जिस बिंदु पर अपनी चेतना को टिकाए हो उससे आगे ले बिंदुओं पर चेतना को टिकाने वालों का यही कहना है।सभी में  सम्भावनाएं है, हम ये क्यों नहीं देख पाते?आज के ही दिन05 अप्रैल 1930 को महात्मा गांधी अपने समर्थकों के साथ नमक कानून तोड़ने दांडी पहुंचे थे।हम उस वक्त वर्तमान से ज्यादा स्वतंत्र थे।हम सिर्फ नमक के लिए गांव व शहर से बाहर किसी से निर्भर थे।लेकिन आज, आज हम अपने को विकसित मान रहे हैं।सन1947ई0 के बाद अनेक धारणाएं टूटनी चाहिए थी और अग्रिम बिंदुओं पर आनी चाहिए थी लेकिन हमारी धारणाएं गड़बड़ा गयी, धारणाओं की भूमि तक।इसके लिए1945में संयुक्त राष्ट्र संघ व श्रीरामचन्द्र मिशन ठीक करने के लिए आ गया था ।लेकिन हम विश्व सरकार की ओर,मानवता, विश्व बंधुत्व की ओर नहीं बढ़ पाए।हमारा गुटनिरपेक्ष आंदोलन भी कमजोर रहा।


05 अप्रैल 1999ई0 को मलेशिया में हेंड्रा वाय-रस से बचाव के लिए 8लाख 30हजार सुअरों को जान से मारने के अभियान की शुरुआत की गई। आज हम किस हद तक गिर गए हैं?हम ही दोषी हैं कुदरत में खलल के लिए!जब अपने पे आ गयी तो फिर बचाव में उस में खलल?हम कब सुधरेंगे?हम कब  बड़ी लाइन के सामने दूसरी बड़ी लाइन खीच पाएंगे?गुरु नानक ने कहा था-जो विकार हैं, जो प्रतिकूलताएँ हैं... उनके सामने बड़ी लाइन खींच दो।ये विकार ये प्रतिकूलताएँ भी कोई हद रखती होंगी।तुम उस हद के पार निकल जाओ।उस हद पार अन्य हदें कहाँ पर हैं?हमारी स्थूलता में नहीं हमारी भौतिकता में नहीं, हमारे सूक्ष्म प्रबन्धन में।सूक्ष्मतर प्रबन्धन में।हमारे कारण जगत में।


आओ, अंतरदीप जलाएं।सिर्फ बाह्य दीप जलाने से काम नहीं चलने वाला।सिर्फ भौतिक दीप जलाने से काम नही चलने वाला।हमारा परित्राण अंतर दीप जलाने से है। इसलिए सन्तों की सुनों।कबीर की सुन लो या गुरु नानक की सुन लो या  रैदास की सुन लो या श्रीरामचन्द्र फतेहगढ़ की सुन लो.....हमारे वर्तमान वैश्विकमार्गदर्शक हैं-कमलेश डी पटेल दाजी । उनका कहना है कि यदि संक्रमण से मरने वालों की संख्या एक प्रतिशत पार कर गई तो हमारे वर्तमान उपाय ही सिर्फ काम नहीं करेंगे।आध्यत्म को स्वीकार करना होगा। हमारा मित्र या शत्रु सिर्फ अपने आत्मा से दूर होना या न होना है।


आओ आत्मा रूपी दीप को जलाने के प्रयत्न शुरू करें।अनेक सूक्ष्म शक्तियां/दिव्य शक्तियां हमारी मदद को तैयार खड़ी हैं।

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