गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

मजहबी,बिरादरियों,उन्माद, हिंसा, उद्दण्डता आदि के बीच वह::अशोकबिन्दु भैया

जीवन सिर्फ इस हाड़ मास शरीर के बनने बिगड़ने तक ही सीमित नहीं।जो इस शरीर के हाव-भाव,व्यवस्था,इच्छओं, क्रियाकलापो आदि तक सिर्फ सीमित हो इसके लिए बनाबटों, जटिलताओं  आदि  में उलझे रहते हैं वे अपने व जगत की सूक्ष्मता, सूक्ष्मतर स्थिति, कारण स्थिति के अनुभव से काफी दूर होते हैं।हमने तो आध्यत्मिक संस्थाओं से जुड़े ब्यक्तियों को भी देखा है, उनमें 99.08प्रतिशत व्यक्ति अपने हाड़ मास शरीर, अन्य के हाड़ मास शरीर, संसार व उसकी वस्तुओं की नजर से सिर्फ ही जिंदगी को देखते है।इसमें भी गनीमत है।इसके लिए भी बनाबट, पूर्वाग्रह, कृत्रिमता, जाति, मजहब आदि को आड़े ले आते हैं और प्रकृति व इंसान के दुश्मन बन जाते है।



सन2011-25ई0 का समय::अनेक सांप बिल से निकल बाहर आ रहे हैं। दूध का दूध पानी का पानी होने में देर न लगेगी।वक्त तो आने दो। नई रामायण के लिए भी, नए महाभारत के लिए भी ध्रुवीकरण हो जाने दो।कौन श्रीकृष्ण के सिराने कौन पैताने बैठता है।कहने को तो श्रीकृष्ण को चाहने वाले कम नहीं हैं।यहाँ श्री कृष्ण से हमारा मतलब एक हाड़ मास उस शरीर से नहीं है जो देवकी पुत्र है।आत्मा, परम् आत्मा, प्रकृति अभियान/यज्ञ,सुप्रबन्धन, नियमितता आदि के लिए प्रयत्न से है ।


आगे औऱ सवाल उठेंगे, इस वक्त भी उठ रहे हैं।कुदरत, जीवन, इंसानियत, विश्व, विश्व बंधुत्व आदि नके लिए प्रयत्न में कौन साथ है?कौन विरोध में है?अनुकूलता प्रतिकूलता, ऋणात्मकता/धनात्मकता आदि के बीच वह तटस्थ है। #श्रीअर्धनरीश्वरअवधारणा, #सातशरीरवकुण्डलीनजागरण, #गीताविराटरूप, #अनन्तयात्रा आदि सम्वन्धी पुस्तकें पढ़ने से क्या नजरिया बना है हमारा?!  विश्व व इंसानियत के लिए खतरा  उन्मादी, मजहबी, जातिवादी आदि  की औकात का घड़ा कब तक नहीं भरेगा। इनकी हद कहीं न कहीं कभी न कभी खत्म होगी।कुदरत व खुदा से बढ़ कर क्या?ऐसे में वह अनजान नहीं हो सकता कि कौन कौन विश्व बंधुत्व, इंसानियत, कुदरत आदि के सम्मान में लगे हैं। अभी खुश हो सकते हो,हम सब को, हमारे समीपवर्ती लोगों को मार कर लेकिन  किसको मार कर?तुम हाड़ मास शरीर, हाड़ मास शरीरों, उसकी हद के आगे भी क्या निकल सकते हो? पिता जी प्रेमराज सुनाते थे-गांव में के ब्राह्मण व क्षत्रिय परिवारों ने हर तरह से प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष किसी न किसी रूप से चैन से न जीना दिया।हालांकि गांव को अपने ही पुर्वजो में बसाया था।लेकिन....??सब कुछ हाड़ मास की क्रियाएं व्यवहार ही नहीं हैं।लेकिन उनको भविष्य में भुगतना पड़ा।


हमने हाड़ मास शरीर के लिए जैसे तैसे लोगों को धोखा दे कर,हिंसा करके, परेशान कर के, जातिवाद, मजहबवाद आदि से प्रभावित हो कर जीवन जी लिया तो क्या जी लिया?नहीं कदापि नहीं।कहते फिरते हो, अरे उसने हमारा क्या बिगाड़ लिया?वह हमारा क्या बिगाड़ पायेगा?या अपने जाति मजहब के नाम से दूसरे जाति मजहब के लोगों को अपनी हिंसा का शिकार बना दिया
और अपने जाति मजहब पर गर्व करते हो।अपने जाति मजहब के हिंसकों के खिलाफ कुछ नहीं बोलते और दूसरी जाति मजहब के लोगों के भले बनने की कोशिस करते हो,ये कहाँ तक चलेगा?इसकी हद कहाँ तक है?क्या नहीं जानते?ये सिर्फ तुम्हारी बनाबटों, कृत्रिमताओ तक ही सीमित है।कुदरत तक नहीं, स्थूल की असलियत तक नहीं।सूक्ष्म जगत,सूक्ष्मतर जगत तक नहीं, कारण जगत तक नहीं।जहां जाति मजहब आदि बनाबटों,कृत्रिमताओ की
कोई औकात नहीं।खुदा के नाम से ,मजहब के नाम से सेवकों, देश रक्षकों, गैर जातकों, गैर मजहबो के सामने चाहें कितना भी उछल कूद करो?तुम्हारी हद कहाँ तक जाएगी?पूरी की पूरी जमात खत्म कर दी?कोई  पूरी की पूरी जाति खत्म कर दी, पूरी की पूरी कोई मजहब की इंसानी भीड़ खत्म कर दी तो किस हद तक तुम सफल हो गए?ये सब कहाँ तक है?अभी तुम अपने स्थूल, सूक्ष्म व कारण तक नहीं पहुंच पाए.... ईश्वर या खुदा तक अपनी पहुंच क्या बनाओगे?



न जाने कितने क्रांतिकारी हुए, कैद से अच्छा है कि फांसी के फंदे पर झूल जाएं।बार बार आऊंगा और संघर्ष करूगां।पुनर्जन्म पर विश्वास करो, चाहें न करो लेकिन इस जज्बे ने आगे चल कर अपने कौम,समाज, देश पर मरने वालों की संख्या कम नहीं होने दी।गुरु गोविन्द छोटे थे, पिता कश्मीरियों पंडितों को सम्बोधित कर रहे थे-अपने आने वाली नस्लों को यदि सुरक्षित रखना चाहते हो तो मरना होगा। बालक गोविंद बोल पड़ा-पिता जी शुरुआत आप करो। इसके बाद क्या हुआ?उन्होंने अपने माता पिता को खोया, अपने बच्चों को खोया लेकिन अपने कौम,समाज, देश के लिए मरने वालों की संख्या में इजाफा ही किया।इसकी हद सिर्फ बनाबटी नहीं थी, कृत्रिम नहीं थी, आगे के स्थूल जगत तक नहीं थी।आगे स्थूल जगत ,सूक्ष्मतर जगत पर भी उसका प्रभाव था।

हमारे पिता जी-प्रेम राज ने अनेक बार बताया था। हालांकि गांव की स्थापना अपने पूर्वजों ने ही की थी।पुरखे यहां तराई के जंगलों में आने के बाद पुवायां राज्य में कारिंदा बन पुवायां राजाओं के लिए राजस्व बसूलने व एक क्षेत्र विशेष पर निगरानी करते थे।पुवायां क्षेत्र में कुनबियों के नेता हमेशा बने रहे थे।बंडा व पुवायां/कहमारा क्षेत्र में जमीन की कमी न थी।लेकिन कुछ ब्राह्मण व ठाकुर परिवारों के मनमानी व षड्यंत्रों का शिकार हमेशा से रहना पड़ा। जीवन की हद सिर्फ बनाबटों, कृत्रिमताओ तक ही सीमित नहीं है। जीवन के ,चेतना के,आत्मा के आगे भी अनन्त बिंदु व स्तर हैं।ईमान की पहुंच कहाँ तक है ?समझने की जरूरत है?जो इन आँखों से ही सिर्फ दिखता है,वही सिर्फ सच नहीं है।पिता प्रेम राज के पिता अर्थात हमारे बाबा मुलाराम राय तभी खत्म हो गए जब पिता प्रेम राज पांच साल के बालक थे। इसके बाद उनका व उनके चाचा फतेह चन्द्र का पूरा जीवन संघर्ष मय बीता। जब हम बालक ही थे तो पिता जी के चाचा फतेहचन्द्र भी चल बसे।हां, पिता जी ने हमें अनेक बार बताया कि खानदान में अन्य मौते भी हुई लेकिन हमें अहसास क्या होता रहा?जिन परिवारों की राजनीति, षड्यंत्र,मनमानी आदि के कारण खानदान तनाव में रहा, उन खानदान के बर्बादी के भी अहसास होते रहे।जो अपने खानदान में मरते रहे, उनके सम्बन्ध में अहसास होता रहा कि वे उन खानदान को प्रभावित करते रहे। वे हमारे व जगत के तीन स्तर हैं-सूक्ष्म, कारण भी।हमने अपनी हद कहाँ तक बना ली है,ये भी महत्वपूर्ण है।इसको यदि समझना है तो तिब्बत के भिक्षु जीवन की समझिए।वहां जो मरने को होता है,मरने से पहले ही बता देते है कि हम मरने के बाद उसकी कोख से पैदा होंगे और मरने के बाद भी बन्धित ऊर्जा/आत्मा/सूक्ष्म सात दिन तक निर्देशित करता रहता है।
रूस में एक ऐसी तकनीकी खोजी गयी है जिससे हमारे प्रकाश शरीर/आभा मण्डल का भी चित्र आ जाता है।हमारे साथ छह माह बाद क्या होने वाला है?उससे स्पष्ट हो जाता है।बाबू जी महाराज ने भी अपनी आत्मकथा में लिखा है कि हमें लाला जी का निर्देश मिला कि बाबू, तुम्हारी साधना जितनी गहराई पकड़ती जा रही है, उतना ही तुम अपने व जगत के सूक्ष्म जगत से जुड़ते जा रहे हो।तुम अपने को ऐसा बनाओ ताकि उन सूक्ष्म जगत की शक्तियों को तुम्हारी मदद के बजाए तुम्हारी विरोधियों ,तुम्हारे माजक बनाने वालों पर लगना पड़े। ये आपके लिए कल्पना हो सकता है लेकिन हमारे लिए नहीं।हम जिस स्तर पर गहराई में होते है, उस स्तर की सूक्ष्म शक्तियां हमारे साथ होती हैं।भूतपूर्व परिवार के हालातों व सूक्ष्म हरकतों ने हमें यहां कटरा में ला पटका।जब आया तो हमने एक साल के अंदर यहां व आसपास क्या है सूक्ष्म?अहसास कर लिया था।उसी एक साल में हम कायस्थान मोहल्ला से सुमित त्रिपाठी से बोला था(स्टेशन रोड पर फाटक के समीप सड़क पर चलते हुए)-इस वक्त हम दो नहीं है अनेक हैं। मालिक चाहेगा तो दुनिया जानेगी की कैसे हमारे आस पास,नगर में होने वाली स्थूल  घटनाओं में सूक्ष्म शक्तियां  सहायक होती है?या हम जो अपने हाड़ मास शरीर, सोंच से जो करते हैं उसका हमारे सूक्ष्म जगत और फिर भविष्य में उसका हम पर,अन्य पर असर पड़ने वाला है?पड़ता है।रूस की उस तकनीकी से-एक व्यक्ति का उस तकनीकी से आभा मण्डल लिया जाता है।उसके एक हाथ में ऊर्जा/प्रकाश का भाव दिखता है।वह एक ड्राइवर था-छह वे महीने क्या होता है? उसका एक्सीडेंट हो जाता है और उसे अपना वह हाथ कटवाना पड़ता है।लोग हमें सीधा समझते है,इसके पीछे कारण है।ओशो क्रांति बीज में लिखते है-आध्यत्म समाज में तथाकथित कायर डरपोक भी बनाता है लेकिन रोज मर्रे की जिंदगी में जो सीना तान कर दबंगई करते नजर आते है वे कानून व्यवस्था, ईमानदारी आदि में त्याग व साहस नहीं दिखा पाते।जो खामोश है, समाज की नजर में सीधे है दिखा जाते है।खामोशी उनकी बहुत कुछ कर जाती है।खामोशी की मार बड़ी गहरी होती है। पिता जी प्रेम राज बताते रहे-खानदान में अमुख अमुख मरा लेकिन हमें अहसास हुआ कि अब वह प्राणी अमुख परिवार में ऐसी ऐसी कंडीशन पैदा करने वाली है।आगे चल वैसा ही हुआ। लोग कहते तो हैं कि दुनिया को चलाने वाला तो कोई और है ,जीवन को चलाने वाला तो कोई और है लेकिन आचरण से इसको मानते नहीं।सदैव ही हाड़ मास मनुष्य मरता है उसके द्वारा किए गए कर्म कभी नहीं मरते वह उसका पीछा जन्म जन्मांतर तक करते हैं


इस दुनिया में मोहम्मद साहब आये, एक औरत उन पर कूड़ा डालती थी, लेकिन वे अपने कर्तव्य में रहे।जब वह औरत बीमार पड़ी तो उसके हालचाल पूछने उसके पास आ पहुंचे। क्षत्रपति शिवाजी के सामने उनके कुछ सैनिक जब कोई मुस्लिम औरत पेश करते हैं तो क्षत्रपति शिवा जी क्या कहते हैं? सबको पता होगा?इसी तरह गुरु गोविंद सिंह भी....जब सामने हिंसा आयी तो उन्होंने हिंसा की।पहल नहीं की। आज की तारीख में जो उन्मादी, हिंसक बनते है अपने जाति मजहब के नाम पर पुरोहितबाद में फंस कर वे कभी उनसे महान नहीं हो सकते जो गैर जाति, गैर मजहब के व्यक्तियों प्रति  द्वेष नहीं रखते,अपने धार्मिक अनुष्ठानों में सबका कल्याण हो.... सर्वेभवन्तु सुखिनः..... बसुधैव कुटुंबकम... आदि का भाव रखने का प्रयत्न करते है। ऐसे लोगों का हाड़ मास शरीर चाहें तुम हजार बार मार दो लेकिन उसके मिशन को नहीं मार सकते। जरा सूक्ष्म जगत में उतरने की कोशिश तो करो,वर्तमान सारी धारणाएं धराशयी हो जाएगी।वहां एक हद के बाद जाति मजहब आदिआदि की चलती बन्द।


हमे यथार्थ को पकड़ने की जरूरत है। हम व जगत के तीन स्तर हैं-स्थूल, सूक्ष्म व कारण।इन तीनों की असलियत को हम नहीं जी बनाबट, कृत्रिमता, पूर्वाग्रह आदि में जीवन खफा देते हैं।हम भूल जाते हैं हमारे, सबके व जगत के अंदर वह भी है जो स्वतः है निरन्तर है।हम उसको कब तक नजर अंदाज करेंगे।जो ही में जीना, उसका अहसास करना,उसके अहसास में जीना ही प्रेम है, आध्यत्म है, धर्म है।वही चिर सम्बंध है।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें