हमारा मिशन व हम: अब एक अभ्यासी/सिक्ख(शिष्य) के रूप में!!
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हमारे अंदर व दुनिया के अंदर कुछ है।
जो निकल जाता है तो हम लाश हो जाएं व दुनिया में जीवन खत्म हो जाए।
जो जिसके दिल में उतरता है वे ऋषि मुनि कहलाते हैं और उसका ज्ञान - वेद।
इसके बाद योग व योगी, आचरण व आचार्य महत्वपूर्ण हैं।
सन्त परम्परा में ही जीवन का अनुभव है।
हम गुरु नानक को नहीं भुला सकते।जिनके दो शिष्य थे-एक हिन्दू व दूसरा मुसलमान।उनकी धमक काबा तक थी।
हम 'गुरु ग्रंथ साहिब'-का सम्मान करते हैं।उससे प्रेरणा के फलस्वरूप अब हम 'विश्व सरकार ग्रन्थ साहिब'-की आवश्यकता महसूस कर रहे हैं।जो विश्व बंधुत्व,इंसानियत का आगाज है।जिसमें दुनिया के सभी देशों के सन्तों की वाणियां शामिल हैं।कुछ संस्थाएं अब दुनिया के सभी सन्तों की वाणियों को लेकर चलने भी लगी हैं।
ईसा पूर्व पांचवी-छठी शताब्दी में वैश्विक आध्यत्मिक क्रांति को सम्मान देने की आवश्यकता है।जिसके लेखन की शुरुआत सन्त अरस्तू व उसके शिष्य सिकन्दर से शुरू होकर फतेहगढ़ से श्री रामचंद्र महाराज के बाद भी जारी रहना चाहिए।
जो निरन्तर,शाश्वत है उसकी याद में मनुष्यता विकसित करना अति आवश्यक है।
दिनांक आपका
24 दिसम्बर 2014 अशोक कु. वर्मा 'बिंदु'
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हमारे अंदर व दुनिया के अंदर कुछ है।
जो निकल जाता है तो हम लाश हो जाएं व दुनिया में जीवन खत्म हो जाए।
जो जिसके दिल में उतरता है वे ऋषि मुनि कहलाते हैं और उसका ज्ञान - वेद।
इसके बाद योग व योगी, आचरण व आचार्य महत्वपूर्ण हैं।
सन्त परम्परा में ही जीवन का अनुभव है।
हम गुरु नानक को नहीं भुला सकते।जिनके दो शिष्य थे-एक हिन्दू व दूसरा मुसलमान।उनकी धमक काबा तक थी।
हम 'गुरु ग्रंथ साहिब'-का सम्मान करते हैं।उससे प्रेरणा के फलस्वरूप अब हम 'विश्व सरकार ग्रन्थ साहिब'-की आवश्यकता महसूस कर रहे हैं।जो विश्व बंधुत्व,इंसानियत का आगाज है।जिसमें दुनिया के सभी देशों के सन्तों की वाणियां शामिल हैं।कुछ संस्थाएं अब दुनिया के सभी सन्तों की वाणियों को लेकर चलने भी लगी हैं।
ईसा पूर्व पांचवी-छठी शताब्दी में वैश्विक आध्यत्मिक क्रांति को सम्मान देने की आवश्यकता है।जिसके लेखन की शुरुआत सन्त अरस्तू व उसके शिष्य सिकन्दर से शुरू होकर फतेहगढ़ से श्री रामचंद्र महाराज के बाद भी जारी रहना चाहिए।
जो निरन्तर,शाश्वत है उसकी याद में मनुष्यता विकसित करना अति आवश्यक है।
दिनांक आपका
24 दिसम्बर 2014 अशोक कु. वर्मा 'बिंदु'
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