सोमवार, 6 अप्रैल 2020

परिवर्तन को स्वीकार करना ही बुद्धिमत्ता की माप है!!

परिवर्तन को स्वीकार करना ही बुद्धिमत्ता की माप है।
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 सँयुक्त राष्ट्र संघ सूचना केंद्र, हार्टफुलनेस एडुकेशन, श्रीरामचन्द्र मिशन आदि के तत्वावधान प्रतिवर्ष करवाने वाले निबन्ध लेखन कार्यक्रम में जो विषय होते हैं,वह अनुभूति, अहसास, चिंतन मनन ,मेडिटेशन आदि को समय देने वालो के लिए अनन्तता का द्वार तक पहुंचने में सहायक होते हैं।

दुनिया में भारत ही ऐसा देश है, जहां धार्मिक कर्मकांडों के बीच जयघोष होते हैं-सबका कल्याण हो। क्यों न वे कितने भी अन्धविश्वासी, जातिवादी अभी हों।अनेक चीजों की शिक्षा वक्त देता है।इस वक्त जब सारी दुनिया कोरो-ना संक्रमण से संघर्ष करते हुए एक जुट है वही एक सम्प्रदाय के लोग व उनके देश गृह युद्ध, पुरोहितवाद, भीड़तंत्र आदि के सहारे वर्तमान हालातों में साहस से खड़े प्रहरियों के हौसले को कम करने व ध्यान बटाने में लगे हैं।यूरोपीय देश जिनकी स्थितियां दुनिया को आकर्षित कर रही थीं, सभी भौतिक संसाधनों से युक्त थीं वे भी आज ज़मीन पर आकर खुले आसमान के नीचे आ गए हैं।कुछ तो अपने घर मे ही कब्रों का इंतजाम कर रहे हैं।कहीं कहीं शवों को दफनाने की जगह जलाने का काम शुरू हो गया है।कुछ देश व गैर मुस्लिम व गैर चीन जनता भारत की ओर देख रही है।

खुदा को स्वीकार करने, कुदरत को सम्मान देने का मतलब क्या है?ये नहीं कि हम खुदा की बनाई चीजों में खलल डालें और अनुशासन, कानूनी व्यवस्था के विपरीत खड़े हो जाएं।हमने तो देखा है कि दुनिया में वास्तव में जो भक्त हुए है-वे उदार, नम्र, सेवक आदि हुए हैं।हालातों के आधार पर हमें परिवर्तन भी स्वीकार्य होने चाहिए।परिवर्तन ही शाश्वत नियम है।आत्मा व परम् आत्मा का विशेष गुण है-सनातन, निरन्तरता, शाश्वतता।हम तो रुके हुए लोग हैं जो कि पुरानी धारणाओं / भूतगामी स्थितियों को त्याग कर भविष्यगामी/विकास शील नहीं होना चाह रहे है। हम अपनी पहचान जाति/मजहब/पुरोहित/हाड़ मास लालसाओं तक ही सीमित किए पड़े हैं।खुदा भी खुद से है।खुद के अंदर की रोशनी से है।हमारी बुद्धिमत्ता से है। हमारी बुद्धिमत्ता की माप परिवर्तन को हमारा स्वीकार्य का स्तर है।हमारी चेतना व समझ किस स्तर व बिंदु पर है?बिंदु तो अनन्त हैं।

वह खुदा-प्रेम व कुदरत- प्रेम निरर्थक है जो खुदा की बनाई वस्तुओं व कुदरत के खिलाफ खड़ा है।हम अपना व्यक्तिगत जीवन अपने घर के अंदर जीने के लिए स्वतंत्र हैं लेकिन कुदरत की अन्य वस्तुओं, जीव जंतुओं, मनुष्यों के प्रबन्धन को बिगाड़ कर नहीं।अनुशासन व कानूनी व्यवस्था को बिगाड़ कर नहीं, सद्भाव को बिगाड़ कर नहीं। एक बात और है जो कौमें वास्तव में स्वाभिमानी है वे सरकारों से उम्मीदें नहीं रखती ,न ही आरक्षण का विरोध व समर्थन करती हैं।ऊपर से समाज सेवा व सरकार की सेवा/सहयोग में लगी हैं।कितने गिर चुके हैं दुनिया में कुछ लोग जो जाति, मजहब ,पुरोहितबाद आदि के बहाने अपनी मनमानी कर व्यवस्थाओं को बिगाड़ रहे हैं।

हम सब को जीवन, कुदरत,स्वास्थ्य, अनुशासन, मानवता, आध्यत्म,सद्भावना आदि को स्वीकार करना चाहिए।




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