सोमवार, 20 अप्रैल 2020

जो प्राकृतिक, निरन्तर, शाश्वत आदि है वह उसी से ही समाधान पाएगा न की तुम्हारे सांसारिक पैमानों से::बाबू जी महाराज

मुकं करोति वाचलम पंगुम लंघ्यते गिरिम।
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवं।।
ये है ही वेद एक स्थान पर आया है कि परमात्मा कल मरने वाले व्यक्ति को भी100साल तक का जीवन दे सकता है।
लेकिन आज कल ऐसा सम्भव क्यों नहीं है?आज कल अनेक धर्म स्थल हैं, पुरोहित, मौलबी हैं, हर घर में कोई न कोई धार्मिक नजर आता है लेकिन तब भी ये सम्भव नहीं है।आज कल पूरा विश्व कोरो-ना संक्रमण से ग्रस्त है लेकिन ऐसी धार्मिकता कहाँ है?जो लोगों को संक्रमण व रोगों से मुक्त करे।
दरअसल जीवन प्राकृतिक है, शाश्वत है।उसे बनाबटों, पूर्वाग्रहों, अशुद्धियों, संस्कारों, छापों ,जातिवाद, मजहब वाद, सांसारिक पैमानों आदि से नहीं जीता जा सकता।इस सब की एक हद है।जो सहज, नैसर्गिक, प्राकृतिक, शाश्वत, निरन्तर है उसे सहज, नैसर्गिक, प्राकृतिक, शाश्वत, निरन्तर से जुड़ने से ही सम्भव है। ये होने की सम्भावनाएं हमारे अंदर छिपी हुई हैं।जो सन्त परम्परा से ही सम्भव है।जो काम देवीदेवता न कर पाएं वे कार्य सन्त कर जाएं।आत्मा से जुडो।उसे परम् आत्मा की ओर होने दो।आत्मा से अनन्त का द्वार खुलता है।अनन्त अर्थात जिसका कोई छोर नहीं... और आप जुड़े किससे है?महसूस किसे करते है?सांसारिक पैमानों को जिसकी कहीं।न कहीं पर हद खत्म हो जाती है।जो जिस स्तर का है वह उस स्तर पर जाकर ही समाधान पाएगा।अपने व जगत मूल से जुडो।जुडो किससे हो?








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