मंगलवार, 7 अप्रैल 2020

कमलेश डी पटेल 'दाजी' के द्वारा दिए गए सुझावों की वर्तमान में प्रासंगिकता !

"दाजी द्वारा दिये गये चार सुझावों की वर्तमान समय में प्रासंगिकता"

प्रिय भाइयों और बहनों , प्रणाम !

एक अत्यंत ही प्रचलित कहावत है - "लोहा जब गर्म हो , तब यदि उस पर चोट मारें तो उसे आसानी से मनचाहा आकार दिया जा सकता है।"

वर्तमान समय में जब पूरा विश्व कोरोना वायरस से भयभीत , चिंतित एवं दुःखी हैं , हम मानवता की इस संवेदनशील दशा को 'गर्म लोहे' की दशा मान सकते हैं। ऐसी स्थिति में हम समस्त अभ्यासी गण यदि पूर्ण सकारात्मक भाव से संपूर्ण मानवता के लिये दाजी द्वारा दिये गये चार सुझावों को  व्यावहारिक रूप से प्रतिपल लेते रहने का पुनीत कार्य करें तो निश्चित तौर पर हम प्रकृति एवं दाजी  द्वारा संसार को बदलने और उसे एक सुंदर और समुचित आकार देने के महानतम कार्य में योगदान ही देंगे। प्रकृति अभी संसार से , लोहसदृश कठोर एवं अवांछित तत्वों का सफाया कर मानवता को अपेक्षाकृत सरल , सहज , शुद्ध , अनुशासित एवं दैवीय रूप देने में लगी है। संपूर्ण मानवता के लिये हमारे द्वारा दिये गये सशक्त मानसिक सुझाव और हृदय की गहराईयों से की गई निःस्वार्थ प्रार्थनाएँ अवश्यम्भावी तौर पर त्रस्त मानवता के हृदयों पर तो मरहम का कार्य करेंगी ही , हमारे द्रुत आध्यात्मिक विकास में भी सहायक होंगी।

यह जगत,विदित है कि - "जैसा हम सोचते हैं , वैसा ही होता हैं।" तो नियम कहता है कि "वैसा सोचो , जैसा आप चाहते हो।"

       अब प्रश्न उठता हैं कि हम सब क्या चाहते हैं ?

उत्तर सीधा - सादा है - "एक ऐसा विश्व , जहाँ हर जना बिल्कुल सहज , सरल , पवित्र एवं प्राकृतिक जीवन जी रहा हो। जहाँ सब एक - दूसरे से निःस्वार्थ प्रेम करते हों।  'जीओ और जीने दो' की उक्ति का पालन करते हुए जहाँ समस्त जन समुदाय पूर्ण नैतिक , सदाचारी एवं चरित्रवान हों। स्वयं में उत्पन्न गड़बड़ियों , खराबियों , असंतुलित शक्तियों और अनुभूतियों में 'समभाव' (जो कि प्रकृति का स्वाभाविक गुण है ) , लाते हुए जहाँ सब जने आध्यात्मिकता के सहारे स्वयं को पूर्ण एवं विशुद्ध बनाते हुए प्रकृति के साथ पूर्ण सामजंस्य स्थापित करने की दिशा में अग्रसर हो रहे हों।"

                 तो फिर देर किस बात की हैं ?

         क्या चीज़ हमें ऐसा करने से रोक रही हैं ?

सिर्फ एक चीज़ और वह यह कि हम सब एक तो स्वार्थपरता से ऊपर उठ मानवतावादी रवैया नहीं अपना पा रहे हैं , स्वयं से परे जाकर अन्यों के लिए निःस्वार्थ प्रार्थना नहीं कर पा रहे हैं। दूसरे - हम सब ये सोचते हैं कि सारी गड़बड़ सामने वाले इंसान में हैं , मैं तो पाक साफ़ हूँ , जब कि आध्यात्मिकता कहती है - "स्वयं को बदलो , विश्व स्वतः बदल जायेगा।" हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिये कि विश्व हमीं सबसे मिलकर बना हैं। हम सब विश्व के स्तर पर एक व्यक्तिगत इकाई हैं। इंसानों के मेल से परिवार , परिवारों के मेल से समाज , समाजों के मेल से राष्ट्र एवं राष्ट्रों के मेल से फिर विश्व बना हैं।

             शुरुआत कहाँ से हुई ? - 'हमसे।'
                   
                तो सबसे पहले ज़रूरी हैं , स्वयं को ठीक करने की। स्वयं में पूर्णता लाने की। अपनी अंगुली को दूसरे की बजाय खुद की तरफ़ करने की , जो आध्यात्मिक साधना के बगैर संभव नहीं। इसलिये आध्यात्मिकता को जीवन में अहमियत देते हुए सर्वप्रथम हम सब स्वयं में बदलाव लाएँ !

          स्वयं को पूर्णता का राही बनाने के बाद फिर दूसरी चीज़ जो हमारे कर्तव्य के दायरे में आती हैं , वह हैं - 'अन्यों के उत्थान हेतु हमारा निःस्वार्थ प्रयास।' जैसे - जैसे हम पूर्णता की राह पर आगे बढ़ते जाते हैं , हम अब स्वकेन्द्रित नहीं रह जाते। अब हमारी 'स्वार्थपरता' अपना संकुचित दायरा छोड़ 'वसुधैव कुटुंबकम' का एक विस्तृत स्वरूप लेती जाती हैं। परिणामस्वरूप अब हम औरों से भी बिल्कुल वैसे प्यार करने लगते हैं , जैसे स्वयं से करते हैं। औरों का भी वैसा हित चाहने लगते हैं , जैसा स्वयं के लिये चाहते हैं। दूसरों को अब हम बिल्कुल वैसा व्यवहार देने लगते हैं , जैसे व्यवहार की उम्मीद हम स्वयं के लिये करते हैं। अभी वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हमें यही सब करने की ज़रूरत हैं।

                   दाजी ने हम सबको समय - समय पर निम्नलिखित 4 सुझाव लेते रहने की सलाह दी हैं ताकि हम सबके द्वारा समयानुसार एवं प्रतिपल लिये गये इन सकारात्मक सुझावों से विश्व में चारों तरफ एक मज़बूत एवं सकारात्मक वातावरण या एग्रिगोर बन जाये , जिसके परिणामस्वरूप उनकी दिव्य योजना सरलता एवं सहजतापूर्वक क्रियान्वित हो जाए।

        "दाजी द्वारा प्रस्तावित 4 सुझाव"

1. प्रथम सुझाव -
          "सार्वभौमिक प्रार्थना या वैश्विक प्रार्थना"

★दाजी कहते हैं - "बाबूजी महाराज के अनुसार यह एक वैश्विक प्रार्थना हैं , जहाँ हम श्रद्धा और प्रेम को सभी में अन्तर्निविष्ट करने का प्रयास करते हैं। यह हमें अपने स्वयं के संकीर्ण , मतलबी , स्वकेन्द्रित स्वार्थ से मुक्त कर हमारे हृदय को खोलती है , यह कि जो कुछ भी मैं करूँ , वह सबको लाभ पहुँचाये , इसके अलावा सृष्टि में ऐसा कुछ नहीं हो जिससे केवल मुझे लाभ पहुँच सके।"

सार्वभौमिक प्रार्थना का तरीका ~

 हर अभ्यासी रात को ठीक 9 बजे जहाँ कहीं भी हो , अपना सारा काम छोड़कर पंद्रह मिनट के लिये ध्यान में बैठ जाए और चिंतन करे कि सभी भाई - बहनों में श्रद्धा और प्रेम भर रहा हैं और उन सबमें मालिक के प्रति सच्ची श्रद्धा दृढ़ हो रही हैं।

★ वर्तमान समय में दाजी ने उपरोक्त सार्वभौमिक प्रार्थना को मानसिक रूप से 24 घंटे दोहराते रहने पर ज़ोर दिया हैं।

                        मालूम है क्यों ?

सहज मार्ग के प्रमुख तत्व , भाग 1 की पृष्ठ संख्या 13 -14 पर चारीजी कहते हैं - "हम और जो भी करते हैं , केवल अपने लिये करते हैं। लेकिन 9 बजे की प्रार्थना हम अन्य सभी के आध्यात्मिक एवं सार्वभौमिक कल्याण के लिये करते हैं।"
        चारीजी कहते हैं - "मैं थोड़ा विस्तार से बताता हूँ। देखिये , बुद्धिमत्ता इसी में है कि हम पूरी मानवता को अपने स्तर तक उठाएँ। यह तो हम सब भलीभाँति जानते हैं कि यदि एक स्थान पर एक ही धनी व्यक्ति हो तो वह चारों ओर से डाकूओं के हमले का निशाना बन जाता है। इसी प्रकार यदि एक ही तंदुरुस्त व्यक्ति हो जिसके चारों ओर सभी बीमार हों तो वह भी सुरक्षित  नहीं है। अतः हमारी साधना के दो पहलू हैं , एक है हमारा अपना विकास और दूसरा यह प्रार्थना कि हमारे साथ - साथ सभी का विकास हो , जिससे हमसे कोई ईर्ष्या न करे , हमारी उन्नति पर किसी की नज़र न लगे , न कोई जलन हो न स्वार्थपरता। हम सभी का उत्थान इसी तरह से हो - हालांकि यह भी सार्वभौमिक प्रार्थना का एक स्वकेन्द्रित पक्ष है।"
दूसरा पक्ष है - "प्रभु , यदि मुझे यहीं रह जाना है तो कम से कम उन्हें ऊपर जाने दो , ताकि जब वे ऊपर जायें तो उनमें से कोई मुझे भी बाद में उठा सके। केवल वही व्यक्ति जो गिर गया है , जानता है कि उसके चारों ओर अवश्य ही कोई हो , जो उसे उठा सके। इसमें  भी स्वार्थपरता का कुछ अंश है।"
         "उच्चतम पहुँच उस संत की हैं जो कहता है : "मैं शाश्वत रूप में यहाँ तब तक रहने को तैयार हूँ , जब तक कि मैं दूसरे सभी लोगों का उत्थान न करूँ।" केवल वही इस तरह प्रार्थना कर सकता है , जिसके लिये बड़े - छोटे का , आध्यात्मिक - अनाध्यात्मिक का , स्वर्ग - नरक आदि का अंतर मिट चुका हो। तो जब हम व्यक्तिगत साधना करते हैं तब हमारा दिन - प्रतिदिन आध्यात्मिक विकास होता हैं  जब हम 9 बजे की प्रार्थना करना जारी रखते हैं , तो हमारी साधना में थोड़ी - थोड़ी सार्वभौमिकता आने लगती हैं और हमारी आध्यात्मिक उन्नति हमारी सार्वभौमिक प्रार्थना के दृष्टिकोण से आये परिवर्तन से मेल खाती हैं जहाँ हम पूर्ण स्वार्थपरता से आंशिक स्वार्थपरता और फिर पूर्णरूप से दूसरों के कल्याण के लिये प्रार्थना करते हैं।"

2. द्वितीय सुझाव - यह विचार लें कि सभी बहनों और भाइयों में सही सोच , सही समझ और जीवन के प्रति सही , नेक एवं उदार दृष्टिकोण का विकास हो रहा हैं।

★ दाजी कहते हैं - "इसे बहुत ही निष्ठा के साथ करें , जब भी आप कर सकें। दिन में , रात में , जितनी भी बार हो सके। मेरे विचार से आपको इसे कंठस्थ करके अपने हृदय तक ले जाना होगा। जब भी आपको खाली समय मिले , बहुत प्रेम के साथ इस प्रार्थना की तरंग भेजें !"

3. तृतीय सुझाव - जब भी आपके पास खाली समय हो , वाहन चलाते समय भी यह विचार लीजिये कि वायु के कण , पेड़ , फूल , लोग , पंछी , दीवार , छत , तस्वीरें , हमारे आस - पास की हर चीज ईश्वरीय याद में डूबी हुई है।

★ दाजी के अनुसार , "यह सुझाव हमारे अपने ही लिये हैं। यह हमारे विकास को गति देगा। हमारे आसपास के परिवेश पर , हमारे गहन - स्व पर इसका अद्भुत प्रभाव पड़ता हैं। आप स्वयं ही अनुभव कर सकते हैं , कुछ दिन इसे अपनाकर देखिये !"

4. चौथा सुझाव - सभी भाई - बहन जो वास्तव में 'परम्' के लिये तड़प रहे हैं , वे सभी हमारे प्रिय महान गुरुदेव की ओर आकर्षित हो रहे हैं। वे सभी उनकी ओर खिंचे आ रहे हैं।
★ दाजी कहते हैं - "हम गुरुदेव को अपनी प्रार्थना अर्पित करते हैं कि 'वे सभी आपकी कृपा से लाभ लें।' "

■ चारों सुझावों के मद्देनज़र दाजी कहते हैं - "एक तरंगित प्रभाव उत्पन्न करने के लिये अगर मैं अवशोषकता की अवस्था दूसरों में उत्पन्न करना चाहता हूँ , तो वह पहले मुझमें होनी चाहिये। तो कृपया यह करने का प्रयास करिये !

कबीर ने क्या खूब कहा हैं -
"दुःख में सुमिरन सब करे , सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे,तो दुःख काहे को होय।।"

अभी समस्त मानवता दुःखी एवं त्रस्त हैं तथा कोरोना की भयावहता के चलते सब विशेष रूप से 'ईश्वरोन्मुखी' हैं। सच तो यह है कि अभी ईश्वर के शरणागत होने के अलावा उनके पास कोई चारा ही नहीं हैं।

 आइये.....हम सब दाजी द्वारा दिये गए चारों सुझावों को प्रतिपल ज़ेहन में बनाये रखते हुए दाजी की आज्ञा का पालन करने की कोशिश करें ,  साथ ही साथ मानवता पर उनके एवं प्रकृति के द्वारा किये जा रहे निर्मलीकरण के महत्वपूर्ण कार्य को अंजाम देने के कार्य में उनका सहयोग भी करें !

                            सधन्यवाद
                      हेमलता बोचीवाल

(copied)

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