अमृतमयी वर्षा
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वर्तमान की तमाम समस्याएं संसार के परिवर्तन के लिए है। लोगों की मानसिकता बदलेगी और वे सभी आध्यात्मिक हो जायेंगे।जो मै आपको बता रहा हूं, वह मैंने ' सत्य का उदय ' में लिखा है। सभ्यता की नींव हड्डियों और अस्थियों से उत्पन्न होगी और इसका मतलब है बहुत अधिक रक्त पात।
इस लिए हर मुसीबत और कठिनाई किसी न किसी भलाई के लिए ही आती है और इससे कुछ अच्छा ही होता है क्योंकि धर्मनिष्ठा आती है।हर अशांति के बाद धर्मपरायणता आती है।
मै आपसे इस लिए कह रहा हूं क्योंकि आप आध्यात्मिक है। मान लीजिए आप को बुखार हो गया है, और दो- तीन दिन बाद जब आप विस्तर से उठते हैं और खुद पर ध्यान देते हैं तो आप खुद में बहुत हल्कापन महसूस करेंगे। यह इस लिए क्योंकि संस्कार निकल गये है और शरीर में जो जहर था उसे ईश्वर ने निकाल दिया है। प्रकृति आप को वैसा देखना चाहती है जैसे आप यहां ( इस धरती पर) पहली बार आये थे,तब थे, - यानी पवित्र । ईश्वर में पवित्रता है। इस लिए वह चाहता है कि हम उतने पवित्र बने रहें जैसे हम पहली बार जन्म लेते समय थे। दु:ख तकलीफें इसी कारण से है। दु:ख तकलीफों का उद्देश्य वहीं शांतिमय स्थिति लाना है।
बाबूजी महराज
रामचन्द्र की सम्पूर्ण कृतियां भाग-५पृ-९१-९२
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अमृतमयी वर्षा हर वक्त है।
सवाल उठता है हमने उसको अबसर कब दिए है हैं?
प्राणाहुति हर वक्त है, हमने उसको अवसर कब दिये हैं?
हम तो आत्मा रूपी किरण हैं जो हर वक्त परम् आत्मा रूपी सूरज से प्राण ऊर्जा प्राप्त है।
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वर्तमान की तमाम समस्याएं संसार के परिवर्तन के लिए है। लोगों की मानसिकता बदलेगी और वे सभी आध्यात्मिक हो जायेंगे।जो मै आपको बता रहा हूं, वह मैंने ' सत्य का उदय ' में लिखा है। सभ्यता की नींव हड्डियों और अस्थियों से उत्पन्न होगी और इसका मतलब है बहुत अधिक रक्त पात।
इस लिए हर मुसीबत और कठिनाई किसी न किसी भलाई के लिए ही आती है और इससे कुछ अच्छा ही होता है क्योंकि धर्मनिष्ठा आती है।हर अशांति के बाद धर्मपरायणता आती है।
मै आपसे इस लिए कह रहा हूं क्योंकि आप आध्यात्मिक है। मान लीजिए आप को बुखार हो गया है, और दो- तीन दिन बाद जब आप विस्तर से उठते हैं और खुद पर ध्यान देते हैं तो आप खुद में बहुत हल्कापन महसूस करेंगे। यह इस लिए क्योंकि संस्कार निकल गये है और शरीर में जो जहर था उसे ईश्वर ने निकाल दिया है। प्रकृति आप को वैसा देखना चाहती है जैसे आप यहां ( इस धरती पर) पहली बार आये थे,तब थे, - यानी पवित्र । ईश्वर में पवित्रता है। इस लिए वह चाहता है कि हम उतने पवित्र बने रहें जैसे हम पहली बार जन्म लेते समय थे। दु:ख तकलीफें इसी कारण से है। दु:ख तकलीफों का उद्देश्य वहीं शांतिमय स्थिति लाना है।
बाबूजी महराज
रामचन्द्र की सम्पूर्ण कृतियां भाग-५पृ-९१-९२
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अमृतमयी वर्षा हर वक्त है।
सवाल उठता है हमने उसको अबसर कब दिए है हैं?
प्राणाहुति हर वक्त है, हमने उसको अवसर कब दिये हैं?
हम तो आत्मा रूपी किरण हैं जो हर वक्त परम् आत्मा रूपी सूरज से प्राण ऊर्जा प्राप्त है।
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