सोमवार, 27 अप्रैल 2020

खामोशी में छिपा अनन्त सम्भव::अशोकबिन्दु भईया

गीता के विराट रूप, संसार की पीपल वृक्ष से तुलना, कुंडलिनी जागरण व सात शरीर पुस्तक, अनन्त यात्रा की ओर पुस्तक,सहज मार्ग के प्रकाश में राजयोग का दिव्य दर्शन-पुस्तक के चिन्तन मनन व कल्पना ने हमारा सोंच व नजरिया ही बदल दिया।दुनिया व उसकी घटनाओं को देखने का नजरिया ही बदल दिया।
भय बनाम अभय
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भय भी खतरनाक है।अभय भी खतरनाक है।
अंगुलिमानों की गलियों में न भय काम करता है न अभय। तुम्हारे ठेकेदार, महंत, नेता, प्रिय, लाटसाहब, जातिबल, धन बल, बाहु बल आदि कुछ भी नहीं कर पाते।अंगुलिमान जो करता है ,एक प्रकार से जुझान में करता है,लीनता में करता है।वह न भय में है न अभय में।
यदि करता भी है तो 100 प्रतिशत की ओर... हम आप 100 प्रतिशत किधर हैं। हम सिर्फ कह सकते है, कि ये अच्छा है ये बुरा है। जीता कौन है?हम अपने जो कहते है, उसके साथ साहस के साथ नहीं खड़े होते।साहस के साथ या तो राम होता है या रावण, अंगुलिमान होता है या बुद्ध, कृष्ण होता है या कंस। वर्तमान में नेता हैं, राजनैतिक दल है, सरकारें हैं..... किसके साथ खड़ी हैं?वार्ड/गांव के माफिया, दबंग, जातिबल,मजहब बल, दारूबाज,जुआं बाज, गाली बाज ,नौकरशाही आदि किसके साथ है?बुद्ध के साथ नहीं,बुद्धत्व के साथ नहीं।वार्ड/गाँव के दबंग/ठकुराई/पंडताई आदि किसके साथ खड़े पाए जाते हैं?बुद्धत्व, वेदत्व, कबीरत्व,सनातनत्व,गुरुत्व, ब्राह्मणत्व, क्षत्रियत्व,शिष्यत्व आदि में कितने पाए जाते हैं? जीवन जीने की एक जो लत होती है वह लत किधर है?वह लत न भय को जानती है न अभय को,न नुकसान को न लाभ को,न अच्छा को न बुरा को---आदि आदि। एक सन्त थे, वे उस पहाड़ी से भी कूद जाते थे, जहां जाना माना था, जिसे मौत की पहाड़ी कहा जाता था।लोग कहते थे, आप तो बड़े साहसी हैं।तब वे कहते-हम तो जानते ही नहीं कि क्या साहस है क्या साहसहीनता। हम ने बच्चों के साथ बड़े अत्याचार किए है।अभिवावक,अध्यापकों,धर्म के ठेकेदारों ने मानव जीवन में गड़बड़ पैदा कर दिया है। ऊपर से कहते हैं-भय बिन होय न प्रीति।भय व प्रलोभन पर अनेक व्यापार खड़े कर दिए गए है। वर्तमान कोरोना संक्रमण के दौरान भी सब लॉक डाउन है लेकिन मजहबी ,जातीय, राजनीति की जहरीली पुड़ियों का व्यापार जारी है।जिसकी जड़ में भय व प्रलोभन ही है।

हम तो कठपुतली हैं??
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कठपुतली कौन है?हर कोई तो तूफान लिए खड़ा है।रावण को दोष देते है कि वह में सिर्फ यही दोष था कि वह अहंकारी था।हम अहंकारी नहीं है?हम अहंकारी के साथ साथ और भी बहुत हैं।
छह महीने पहले उसको  उस मशीन ने बता दिया था कि आप के बाएं हाथ में ऊर्जा खत्म हो रही है, प्रकाश दिखाई ही नहीं देता। अब वह एक एक्सीडेंट में उस हाथ को क्षतिग्रस्त पाता है। चिकित्सक को उस हाथ को काटना होता है। 'आध्यत्म जगत के व्यवहार में लक्षण व प्रयोग'- को जो वक्त देते है, उनको आप कैसे ढूंढेगे?उनको सुनना व फॉलो करना तो मुश्किल काम।उनको ढूंढ भी लिया तो भी खतरा है।यदि आप दुनिया की नजर में अपना चरित्र खड़ा करना चाहते हैं।अपने हाड़ मास शरीर की नजर में सिर्फ अपना चरित्र खड़ा करना चाहते है।एक कहता है-आचार्य है मृत्यु।योग का पहला अंग-यम है -मृत्यु। किसी ने कहा कि मैं मृत्यु सिखाता हूँ, आप समझ नहीं पाए।आत्मा की धारणाएं दूसरी है, हाड़ मास शरीर की धारणाए दूसरी है। लेकिन तब भी दोनों, दोनों नहीं तीनों -स्थूल, सूक्ष्म व कारण का जोड़ ही योग है।
गीता में श्रीकृष्ण एक ओर कहते है-तू जैसा कर्म करेगा वैसा फल पाए गा।दूसरी तरफ ये भी कहते हैं कर्म तो मैं कराता हूँ, तू बस खड़ा रह।

सँघर्ष बनाम शत्रुता!!
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मनोवैज्ञानिक कहते है-मन ही हमारा शत्रु है।मन ही हमारा मित्र। जगत में न कोई मित्र है न कोई शत्रु।सन्त(स+अंत) या सम दर्शी कहते हैं-न काहू से बैर न काहू से बैर।सन्त के लिए हर हाड़ मास शरीर मन्दिर है।उपासना का माध्यम है।वह इसलिए है क्योंकि उसमें आत्मा है।उसमें  अनेक दिव्य सम्भावनाएं छिपी है। संग+हर्ष तो हमारा है-अंधेरे से प्रकाश की ओर जाने का।हमारा भविष्य है-प्रकाश।शरीर से मन की ओर, मन से आत्मा की ओर।आत्मा से परम् आत्मा की ओर।अनन्त प्रवृत्तियों की ओर...हमारा कर्म क्या है?ग्रंथो का हेतु क्या है?आत्म प्रबन्धन व जगत प्रबन्धन ।जब ये दो हमारे कर्म हो जाते है तो एक दशा के बाद हम सिर्फ निमित्त रह जाते है।कर्ता कोई और....जो आत्मा, परम् आत्मा, अनन्त प्रवृतियों से निर्देशित होता है।
श्रद्धा बनाम कायरता!!
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कायरता दो तरह की होती है-एक समाज की नजर में दूसरी परम् आत्मा की नजर में। दबंगता भी दो तरह की होती है-एक समाज की नजर में एक परम आत्मा की नजर में। किसी ने कहा है -श्रद्धा भी खतरनाक है। एक जातिवाद, मजहब वाद, भीड़ हिंसा, लोभ लालच ,प्रलोभन, भय के साथ होती है दूसरी मानवता, अध्यत्म,विश्व बंधुत्व, सन्त परम्परा आदि के साथ । हमारे जीवन में एक व्यक्ति आया, दो साल लगभग हम उसके साथ रहे।हमने सब कुछ बर्दाश्त किया।हमें पता था, उसकी चेतना व समझ का क्या स्तर है?वह हमको सुनने के लिए भी तैयार नहीं है।सुनता भी है तो मजाक ही बनता है।उसके षड्यंत्रों का भी शिकार होना पड़ा। हमने भौतिक नुकसान भी उठाया।हमें उसके साथ काम करना छोड़ना पड़ा लेकिन वह हमारे बाद वह भी वहां न रुक सका।वह जहां गया, वहां भी वह बाज न आया।कुत्ते की पूंछ सीधी नहीं होती।काटी जा सकती है। सात माह में ही उसका सब स्वाहा हो गया।ग्रन्थ कहते हैं.. पानी बढ़ने के साथ साथ कमल की।नार बढ़ती जाती है लेकिन पानी कम हो जाता है लेकिन नार नहीं। शायद आप नहीं समझे गे श्रद्धा क्या है?खामोशी क्या है? बाबू जी महाराज ने कहा है कि जिससे तुम परेशान हो रहे हो, उससे ऊपर वाले के हो जाओ।सब कुछ वही संभालेगा। बाबू जी कहते है-जब हम साधना में गहरे होते गए, सूक्ष्म से जुड़ने  शुरू हो गए तो लाला जी महाराज ने कहा-अपना आचरण भी उम्दा बनाओ।लोग तुम्हारी माजक बनाते है।तुम्हारे विरोध में रहते है।जिन सूक्ष्म शक्तियों को तुम्हारी मदद में काम करना चाहिए उन्हें तुम्हारे चारो ओर की कुशक्तियों से भी जूझना पड़ता है।








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